जब सच में युद्ध हो रहा था, तब कुछ लोग अंग्रेजों की चरणपादुका ढो रहे थे और क्रांतिकारियों के खिलाफ मुखबिरी कर रहे थे. अब देश आजाद हुए 73 साल हो गए हैं, तब उसी कुनबे के लोग फर्जी राष्ट्रवाद का चोला ओढ़कर रोज-रोज जयचंद और गद्दार खोज रहे हैं.

पहले तो ये अपनी ऐतिहासिक गद्दारी पर पर्दा डालने की कोशिश थी, लेकिन अब मामला उससे आगे जा रहा है.

अब विरोधियों के अलावा, आम जनता को भी गद्दार और देशद्रोही कहा जा रहा है.

सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा है कि अलबला गए हैं. एक सांसद महोदय बीएसएनएल के 80 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को गद्दार बता रहे हैं. इन्हें कोई ये समझाने वाला नहीं है कि हजारों या लाखों की संख्या में आम कामगार जनता अगर ​किसी पार्टी और सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दे तो उसे खरीदे गए टीवी एंकर और भाड़े के प्रवक्ता नहीं बचा पाते. उसे भगवान भी नहीं बचाने आते.

ये बात तो इनके दिमाग में घुसती ही नहीं कि लोकतंत्र में कोई विरोध या असहमति हो सकती है. ये हर दिन जनता को बता रहे हैं कि हम ही देश हैं, हम ही राष्ट्र हैं, हम ही सरकार हैं. इनको भगवान बनने की सनक सवार हो गई है.

इन फर्जी राष्ट्रवादियों को अब गली-गली गद्दार खोजने का ये जहरीला प्रोजेक्ट बंद कर देना चाहिए.

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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