क्या आप भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री का पद, प्रधानमंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री के फैसले आदि सार्वजनिक सरोकार की चीजें नहींं हैं? एक आरटीआई के जरिये संदिग्ध पीएम केयर्स फंड की सूचना मांगी गई थी. इसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत पीएम केयर्स फंड सार्वजनिक प्राधिकार यानी कि पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. इसके बारे में सूचना नहीं दी जा सकती है. हालांंकि यह झूठ है.
आरटीआई कानून के मुुताबिक, कोई भी संस्थान जिसका गठन संविधान, संसद के किसी कानून या सरकार की किसी अधिसूचना या आदेश के तहत किया गया हो, उसे पब्लिक अथॉरिटी माना जाएगा. कानून के मुताबिक, पीएमओ आरटीआई एक्ट के तहत पब्लिक अथॉरिटी है. क्या प्रधानमंंत्री के कार्यालय पर भारत का संविधान लागू नहीं होता? सरकार क्या छुुपा रही है? क्या आरटीआई कानून को इसीलिए कमजोर कर दिया था, ताकि सरकार अपनी बेईमानी छुपा सके?
सरकार ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए आम जनता से आर्थिक मदद मांगी. जनता ने दान किया. क्या जनता ने यह सोच कर दान किया था कि यह राशि किसी के निजी खर्च के लिए है? क्या जनता ने इसलिए दान नहीं किया था कि यह राशि महामारी की चपेट मेंं आई जनता पर खर्च होगी? इस पैसे का क्या किया गया?
लाखों लाख लोग हजार दो हजार किलोमीटर पैदल चले. जितने लोग महामारी से मरे, उससे ज्यादा लोग अन्य बीमारियों से मर गए जिन्हें अस्पताल और मेडिकल सुुविधाएंं नहीं मिल सकींं. भूख से मरने, आत्महत्याएंं करने की खबरें आ रही हैं. पीएम केयर्स किसलिए बटोरा गया था?
अगर पीएम केयर्स फंड में योगदान देने पर टैक्स छूट भी मिलती है तो इसके कैग द्वारा ऑडिट की व्यवस्था क्यों नहींं की गई है?
पीएम केयर्स फंड पहले से ही संदिग्ध है. जब पहले से देश में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष है, जिसका सिस्टम पारदर्शी है, तो इसकी स्थापना क्यों की गई? इस सरकार को पारदर्शिता से क्या समस्या है?
पीएम केयर्स में अब तक करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपये एकत्र हो चुके हैं लेकिन आपदा में जान गंवाते लोगों पर भी इसे खर्च नहीं किया गया. क्या यह ‘आपदा को अवसर’ में बदलने का प्रयोग है?
(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)