सरकार चाहती है कि खेती का बाजार पूंजीपतियों के हाथ में हो. वही पूंजीपति, जिनमें से कई देश के बैंक लूट कर विदेश भाग गए. बीजेपी सरकार सपना देख रही है कि भगोड़े और लुटेरे पूंजीपति मिलकर देश चलाएंगे.

इसी सपने के तहत हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बसअड्डे और राष्ट्रीय कंपनियां देश के चंद अमीरों को बेची जा रही हैं.

किसान आज जो मांग रहे हैं, उसमें नया कुछ नहीं है. ये मांग बरसों पुरानी है. नया सिर्फ इतना है कि मौजूदा सरकार ने नए कानून बनाकर किसानों की मुसीबत और बढ़ाने का इंतजाम कर दिया है.

इसने फसलों की उपज बेचने की सुलभ व्यवस्था करने, फसलों के उचित मूल्य दिलवाने, खेती से घाटे को कम करने की जगह उसे पूंजीपतियों के हाथ बेचने का कानून बना डाला.

बीजेपी में सत्ता में ये कह कर आई थी कि 70 साल में जो गड़बड़ी हुई है, उसे ठीक करेंगे. लेकिन उसने ठीक कुछ नहीं किया, सिर्फ बिगाड़ा. जैसे मनमोहन सरकार ने जनता के हाथ में आरटीआई का अधिकार दिया था, इसने उस कानून को ही कमजोर कर दिया.

जैसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले छोटे और मझौले उद्योगों को नोटबंदी के जरिये ढहा दिया और जीडीपी को माइनस में पहुंचा दिया.

इसी तरह, किसानों की जो मांग बरसों से थी, वह तो अब तक बनी है, लेकिन केंद्र सरकार ने कानून बना डाला जिसमें मंडियां खत्म हो जाएंगी. कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग आएगी. पूंजीपति सीधे किसानों से उत्पाद खरीदेंगे.

नए कानून में कालाबाजारी पर से प्रति​बंध हटा लिया गया है, जिसका मतलब है कि पूंजीपतियों को कालाबाजारी करने और महंगाई बढ़ाकर जनता की जेब काटने का अधिकार भी मिल गया है.

वह किसान से 10 रुपये की आलू खरीदेगा और 50 या 100 रुपये में भी बेचेगा तो उस पर नियंत्रण का कोई कानून नहीं है. किसान का घाटा आएगा तो उसकी जिम्मेदारी किसी की नहीं होगी. एमएसपी पर सरकार लिखित देने को तैयार नहीं है. यानी जिस धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1800 रुपये तय है, वही धान यूपी में अधिकतम 1100 रुपये में बिक रहा है.

सरकार इस विसंगति को और बढ़ाना चाहती है. नये कानून के बाद पूंजी​पति इस विसंगति को अपने हिसाब से नियंत्रित करेगा.

सरकार चाहती है कि वह मेडिकल, शिक्षा, खेती, परिवहन, हर सेक्टर को पूंजीपतियों को बेच दे. पूंजीपति देश चलाएं और नेता खाली भाषण झाड़ें. लेकिन इसकी कीमत आम जनता और किसान चुकाएंगे. जो आंदोलन चल रहा है, वह सिर्फ किसानों का आंदोलन नहीं है. अगर आप लुटने को तैयार नहीं हैं तो वह आंदोलन आपका भी है.

( यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here