हमारी सरकारों पर हम नागरिकों का कोई दबाव नहीं है. हमारा समाज कुछ कुछ सालों में आंख मूंद कर एक नेता को भगवान बना लेता है. कभी कोई प्रधानमंत्री ‘दुर्गा का अवतार’ घोषित कर दी जाती है तो कभी कोई प्रधानमंत्री ‘विष्णु का अवतार’ बता दिया जाता है.
हम आंख मूंदकर उन्हें पूजते रहते हैं. पहले प्रधानमंत्रियों की जगह राजा और सुल्तान हुआ करते थे.
नेताओं को पक्का यकीन है कि चाहे वे किसानों को बेरहमी से पिटवाएं, गरीबों को रौंदें, अदालत के बाहर धड़ल्ले से हत्याओं का आदेश दें, दंगा कराएं, दंगाई भाषण दें, विधायक खरीदें, सांसद बेचें, सांसद खरीदें, संसद बेच दें, सरकार बेच दें, देश बेच दें, जनता कभी नाराज नहीं होगी.
हम जनता को कुछ भी बुरा नहीं लगता. हमें लोकतंत्र से ज्यादा उन नेताओं पर भरोसा है, जो दिन भर झूठ का कारोबार करते हैं.
आधा दर्जन से ज्यादा उदाहरण मौजूद हैं, जब धड़ाधड़ विधायक खरीदे गए, सरकार गिरा कर सरकार बनाई गई, सब जानते हैं कि यह देश की संपत्ति और सत्ता का दुरुपयोग है, लेकिन नेताओं को जनता का कोई भय नहीं है, क्योंकि उन्हें मालूम हमारी जनता ‘न्यायप्रिय’ नहीं है.