ये जो आपको बताया जा रहा है कि कोविड से भारत में मृत्यु दर कम है वो सिर्फ भारत का नहीं है। भारत के पड़ोसी देशों से लेकर दक्षिण पूर्ण एशिया के देशों में भी है।
दूसरी बात इससे आप तब संतुष्ट होते जब इस महामारी से लड़ने की व्यवस्था हर जगह एक सी बेहतर हो गई होती। थाली बजाने के चार महीने हो चुके हैं।
जैसे ही आप अहमदाबाद सिविल अस्पताल और बेंगलुरु के विक्टोरिया अस्पताल का आँकड़ा देखेंगे आपको कुछ और नज़र आएगा।
विक्टोरिया अस्पताल में जितने भी मरीज़ वेंटिलेटर पर गए हैं उनमें से नब्बे फ़ीसदी मर गए हैं।
एक्सप्रेस की रिपोर्ट में डॉ ने कहा है कि जितने भी मरे हैं वो देर से आए हैं। इसी अस्पताल में जो समय से आए हैं उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाने की ज़रूरत कम पड़ी।
अब आप अरविंद केजरीवाल की उस बात को याद करें जिसमें उन्होंने कहा था-
टेस्टिंग में देरी हो रही थी, एंबुलेंस मिलने में देरी हो रही थी और भर्ती की प्रक्रिया के कारण दे रही हो रही थी इस कारण जून में हर दिन सौ लोग मर रहे थे। इन तीन देरियों को ठीक कर दिया तो अब एक दिन में 30-35 मौतें होती हैं।
इसका मतलब है सत्तर लोगों को बचाया जा सकता था। वो महामारी से नहीं मरे। इंतज़ाम से पहले थाली बजाने में मग्न रहने से और लापरवाही से मरे।