सुप्रीम कोर्ट ने तीन बलात्कारियों को बरी कर दिया जिन्होंने 19 साल की एक लड़की के साथ गैंगरेप किया, लोहे की रॉड से शरीर को दाग दिया और तेजाब डालकर आंखों को जला दिया।

बिलकिस बानो के बलात्कारियों को छोड़ने का असर पड़ा है या फिर जज ने कुछ अलग ही कानून पढ़ा है, मगर फिलहाल इन वहशी दरिंदों को छोड़ दिया है। ये बलात्कारी संस्कारी थे या नहीं, कुलीन ब्राह्मण थे या नहीं, अभी तक भाजपा नेताओं ने इसपर कोई बयान नहीं दिया है।

मां फूट-फूटकर रो रही हैं, पिता न्याय की मौत का मातम मना रहे हैं, आस में बैठे लोगों ने तो उम्मीदों का अंतिम संस्कार कर दिया है। बलात्कारियों के बचाव कि इतनी कोशिश क्यों कर रहे हैं सिस्टम चलाने वाले लोग! पता नहीं इस देश को क्या हो गया है।

( आप पढ़ रहे हैं वीडियो एपिसोड का ट्रांसक्रिप्शन लेख, आगे डिटेल में पढ़ें👇🏽)

एक 19 साल की लड़की का तीन दरिंदों ने अपहरण किया, बेरहमी से बलात्कार किया, जिस्म को सिगरेट से जलाया, गाड़ी में रखे खतरनाक हथियारों को उसके अंगों को तहस नहस कर दिया।

दरिंदगी और वहशियत इस कदर हावी थी कि यहां भी नहीं रुके- गर्म लोहे से पूरी शरीर को दाग दिया और आंखों पर तेजाब डाल दिया। लड़की के जिस्म के साथ जितने वहशी प्रयोग किए जा सकते थे किए गए, फिर मरने की हालत में वहीं फेंक दिया गया।

ये पूरी घटना है राजधानी दिल्ली की और साल था 2012 का, जिस साल के अंत में निर्भया के साथ ऐसा ही जघन्य अपराध हुआ। अब 10 साल बाद आया है इस गैंगरेप मामले में फैसला- तीनों बलात्कारियों को छोड़ दिया गया।

जिन्हें निचली अदालत ने दी थी फांसी की सजा, जिन्हें हाईकोर्ट ने भी सुनाई थी फांसी की सजा, उनकी इस सज़ा को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बदल दिया गया।

न्यायालय जितना बड़ा होगा न्याय की उम्मीद उतनी ही कम होगी, इस बात को इस फैसले ने मजबूत कर दिया।

बुरी तरह से फूट-फूट कर रो रही है मां, अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद कहां जाए? उसकी बेटी के साथ दरिंदगी की गई फिर भी उन्हें छोड़ दिया जा रहा है अपना ये दुख किसे बताए?

सर्वोच्च अदालत के सामने खड़ी होकर सुबह से रोए जा रही है, रोए जा रही है। न्यायालय में न्याय क्यों नहीं मिलता बस यही सवाल दोहराए जा रही है।

मां हालत बुरी है बहुत कुछ नहीं बोल पा रही है इस लड़ाई में साथ देने वाली समाजिक कार्यकर्ता कुछ बोल रही हैं, सुनें वो क्या बता रही हैं।

( सामाजिक कार्यकर्ता कहती हैं कि अगर आजीवन कारावास की सज़ा होती तब भी हमें आपत्ति होती कि फांसी के नीचे कोई सजा ना हो। मगर यहां तो इस फैसले ने हैरान कर दिया, गैंगरेप के दोषी दरिंदों को रिहा कर दिया गया। इस देश की न्यायपालिका से पूरी तरह से भरोसा ही उठ गया)

योगिता भयाना जो कुछ बता रही हैं, मानो किसी क्रूर शासक के शासनकाल का किस्सा सुना रही हैं। 21वीं सदी के तीसरे दशक में न्यायधीश दे रहे हैं ऐसा फैसला, इस बात पर यकीन ही नहीं कर पा रही हैं।

सोचिए फरवरी 2012 में राजधानी दिल्ली के अंदर जब इस लड़की के साथ ऐसा जघन्य अपराध हुआ, तब स्वतः संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत कुछ दिनों या कुछ महीने में सारी प्रक्रिया पूरी कर देती औऱ दरिंदों को सख्त सजा सुना देती तो दिसंबर महीने में इसी राजधानी में निर्भया के साथ बलात्कार की ऐसी घटना करने की कोई जुर्रत करता क्या?

अगर ऐसे मामलों में जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा देने की पहल कर ली जाती तो तबसे हजारों घटनाएं होती क्या? मगर समय पर न्याय न देना तो न्यायधीशों की आदत हो गई है, अब तो देर से भी न्याय देने से इनकार कर दे रहे हैं, अन्याय कर रहे हैं।

इसी व्यवस्था का शिकार होकर आज टूट चुके हैं पीड़िता के पिता, अपनी आपबीती सुना रहे हैं।10 साल में मुझे न्याय नहीं मिला तो अंकिता भंडारी को क्या न्याय मिलेगा, ऐसा कहकर भावुक हो जा रहे हैं।

बाकी सरकार और न्यायालय के लोग तो इतने निर्दयी हो चुके हैं कि सही और गलत का फैसला ही नहीं कर पा रहे हैं।जबकि नाश्ते में लेते हैं जो नफरत से भरी एक प्लेट, वो गोदी मीडिया के एंकर भी इसपर भावुक हो जा रहे हैं।

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