जो सरकार बलात्कारियों को रिहा करके, आज़ादी का अमृत महोत्सव मना लेती है, वो सरकार PM मोदी के मास्टरस्ट्रोक, नोटबंदी का जश्न नहीं मना रही है, कुछ गड़बड़ है क्या?

जिस प्रधानमंत्री ने मांगे थे मात्र 50 दिन, उन्हें 6 साल का वक़्त मिल गया। मगर चौराहे पर आने की बात छोड़ो, हिसाब तक नहीं बता रहे हैं; कुछ गड़बड़ है क्या?

जिसके ख़ातिर सुधीर चौधरी और श्वेता सिंह जैसे ऐंकरों ने वैज्ञानिक होने का एक्सट्रा प्रभार संभाल लिया, वो अब इन्हें भी कोई नया सिग्नल नहीं भेज रहे हैं; कुछ गड़बड़ है क्या?

कैश का चलन घटाना था-उल्टा 72% बढ़ गया; खुलासा करने वाले मीडिया को कोई धमकी नहीं दे रहा है, कुछ गड़बड़ है क्या?

99% से ज्यादा या कहें लगभग 100% पुरानी नोट, बैंकों में वापस जमा हो गईं-लाखों करोड़ की कथित ब्लैकमनी पकड़ी नहीं गई, कुछ गड़बड़ है क्या?

दैनिक भास्कर का दावा है RBI के रिकॉर्ड से 9 लाख 21 हजार करोड़ रुपए की कीमत की 1680 करोड़ नई नोट गायब हैं-सरकार इस संदिग्ध ब्लैकमनी पर नहीं बोल रही, कुछ गड़बड़ है क्या?

6 साल में कालाबाज़ारी के साथ साथ नक्सलवाद और आतंकवाद सब बंद हो चुका होगा- मोदी के सपनों का न्यू इंडिया बन चुका होगा, मगर कोई इसका क्रेडिट नहीं ले रहा है, कुछ गड़बड़ है क्या?

सरकार के लोग चुप हैं, कथित पत्रकार लोग भी चुप हैं, सारे जिम्मेदार लोग चुप हैं; चुप्पी को चुनावी शोर में दबाया जा रहा है, इसलिए पूछ रहे हैं कुछ गड़बड़ है क्या?

( आप पढ़ रहे हैं वीडियो एपिसोड का ट्रांसक्रिप्शन लेख, आगे विस्तार से पढ़ें)

अच्छी बात है कि इस सरकार को हर छोटी बड़ी बात पर जश्न मनाना आता है। मार्केटिंग की बात है कि इस सरकार को बढ़ा चढ़ाकर प्रचार करना आता है।

मगर हैरानी की बात है कि अपने उस मास्टरस्ट्रोक का प्रचार नहीं कर रही, जो अभी तक का इसका सबसे बड़ा कारनामा है।

8 नवंबर 2016 की रात 8:00 बजे जब प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि 500 और 1000 के नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।
तो पूरे देश में भगदड़ मच गई अफरा तफरी का माहौल बन गया।

क्योंकि इन 2 सबसे बड़ी नोटों की हिस्सेदारी कुल करेंसी में 80 फ़ीसदी से ज्यादा थी, मानो सरकार ने इस देश की वर्तमान करेंसी को ही अवैध ठहरा दिया।

नई नोट की छपाई कम हुई थी एटीएम की व्यवस्था नाकाफ़ी थी। और बैंकों के सामने लगी लाइन तो जानलेवा थी। ठंड में दिन भर लोग बैंकों के सामने लाइन लगाकर खड़े होते थे अपने ही पैसे को जमा कराने के लिए, और रात भर एटीएम के सामने खड़े होते थे- अपने ही पैसे को निकालने के लिए।

गुल्लक में जमा सिक्कों से 2-4 बार राशन खरीदे जा सकते हैं, महीनों तक घर गृहस्ती नहीं चलाई जा सकती।तकिए के नीचे या गद्दी के नीचे रखे खुल्ले पैसे से 1-2 जरूरी सामान खरीदे जा सकते हैं, पूरे परिवार की पॉकेट मनी नहीं चल सकती।

शादी ब्याह और इलाज जैसी आपात स्थितियों की तो बात ही दर्दनाक थी उस करतूत के लिए तो सरकार को माफी नहीं दी जा सकती। ऐसी भयावह हालात पर भी सरकार के लोग ठहाके लगा रहे थे। भाजपा नेता मनोज तिवारी को सुनें कैसे मजाक उड़ा रहे थे-

इस एमपी से संजीदगी की क्या उम्मीद करें जब पीएम ही इस हादसे पर चुटकी ली रहे थे। जापान में भाषण देते समय सुनिए शादी वाले घर में पैसे ना होने की बात पर कैसे ठहाके लगा रहे थे।

ऐसे हालात में नाराजगी और बेचैनी बढ़ती जा रही थी मगर सबको समझाने की कमान टीवी और अखबारों ने संभाली थी।
सरकार के लोग तो दे ही रहे थे तरह-तरह की दलील मगर असली दलील तो कथित पत्रकारों ने दी थी।

अखबारों में लेख लिखे जा रहे थे कि कैसे नक्सलवाद और आतंकवाद की रीढ़ टूट जाएगी। टीवी चैनलों के एंकर समझा रहे थे कि कैसे नैनो चिप के जरिए नई नोट पकड़ी जाएगी।

लोग अपनी ही जमा पूंजी को पाने के लिए तड़प रहे थे रो रहे थे बिलख रहे थे, एटीएम की लाइन में दम तोड़ रहे थे; मगर सबको मोदी के न्यू इंडिया का ख्वाब दिखाया जा रहा था। कभी 50 दिन तो कभी 100 दिन के अंदर सब कुछ ठीक हो जाने का भरोसा दिलाया जा रहा था।

अब 50 दिन या 100 दिन नहीं 6 साल हो चुके हैं। नोटबंदी की सफलता बताकर कोई जश्न क्यों नहीं मना रहा है?
ज़ी न्यूज़ वाला एंकर अब आ चुका है आज तक में, जहां से पहले ही एक चिप विशेषज्ञ मौजूद थीं, उन्हीं के साथ साझा प्रोग्राम करके सबको अभी तक के फायदे क्यों नहीं बता रहा है?

आरबीआई के रिकॉर्ड में जो नहीं है सैकड़ों करोड़ नई नोट, उन्हें इनका रडार क्यों नहीं पकड़ पा रहा है? घटने के बजाय 72 फ़ीसदी क्यों बढ़ गया कुल कैश, इसपर सफाई देने वाला एपिसोड क्यों नहीं आ रहा है?

कायदे से सफाई तो आनी चाहिए सरकार की तरफ से, कि वो लोग नोटबंदी की सालगिरह क्यों नहीं मना रहे हैं।

या फिर पीएम मोदी ही आते 8 नवंबर की रात 8:00 बजे और बोलते कि हम अपने फैसले पर अफ़सोस जता रहे हैं।
मूर्खता के लिए माफी मांगते हैं और जिनकी जान चली गई उसके लिए शोक मना रहे हैं।

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