फातिमा लतीफ कोई आम लड़की नहीं थी। देश की प्रतिभा थी। एंट्रेंस टेस्ट की टॉपर थी। फातिमा को मारकर उन्होंने देश का नुकसान किया है।
फातिमा लतीफ, पायल तड़वी, रोहित वेमुला, बालमुकुंद भारती, अनिल मीणा, विपिन वर्मा, सैंथिल कुमार, मनीष कुमार… ये सब जातिवादी एजुकेशन सिस्टम और टीचर्स के शिकार बने।
रोहित वेमुला, अनिल मीणा फिर मुंबई में आदिवासी डॉ. पायल तड़वी जिसके जस्टिस के लिए शुरू से अब तक हम लड़ रहे हैं। बाकी अब हमारी मुस्लिम बहन फातिमा लतीफ को जिंदा लाश बना दिया गया। क्या इन मनुवादियों से खुलकर आरपार की लड़ाई नहीं लड़ोगे?
एम्स और महावीर मेडिकल कॉलेज में Sc-St-OBC के छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर थोरात और मुनगेकर कमेटी ने रिपोर्ट दिया। रिपोर्ट में सीधा लिखा की Sc-St-OBC के छात्रों के साथ द्रोणाचार्य भेदभाव कर उनको आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रहे हैं, लेकिन कोई एक्शन नहीं।
IIT मद्रास में होनहार फातिमा ने की आत्महत्या: मुस्लिम होकर भी टॉप करती थी, इसलिए होता था उत्पीड़न
आपके बच्चों की हत्याएं करना जिनका शौक है, उन #JusticeforFathimaLateef जेएनयू जैसे संस्थान भी तभी बचेंगे जब हम सुनिश्चित करें कि #द्रोणाचार्योंकानाशहो किसी एक की बात नहीं है, सबको बारी-बारी से मार रहे हैं। इसीलिए विरोध का स्वर और तेज़ होना जरूरी है।
JLN बड़े ठरकी थे या ABV, आप जानते हैं। लेकिन क्या आप ये भी जानते हैं कि आईआईटी की टॉपर छात्रा फातिमा को मरने पर विवश करने वाले दोनों प्रोफेसर अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं। प्रो. Hemachandran Karah व प्रो. Milind Brahme को ये सहन नहीं होता था कि एक मुस्लिम लड़की टॉप करती है, और उनकी जाति के लड़के फिसड्डी रह जाते हैं।
फातिमा की संस्थागत हत्या के मामले को हल्का करने के लिए वे बाल दिवस और उसके विरोध में ठरकी दिवस मना रहे हैं। आप बखूबी जानते हैं कि उन पर आपको रिएक्ट करना ही नहीं है। हमारे पास अपने जरूरी मुद्दे हैं न.
बच्चे विश्वविद्यालयों में मारे जाते रहें, तो बाल-दिवस कैसे मनाएं?
उनकी राजनीति का सवाल है। वो नेहरू के दरबार में हाजिरी न लगाएंगे तो उनकी माइनस मार्किंग हो जाएगी इसलिए वो फातिमा की बात नहीं करेंगे आज। इसीलिए चुनावों में पिटते हैं। लेकिन आपको तो ये डर नहीं है। दोषियों को जेल पहुंचाने में मदद करें।
( ये लेख महेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )