श्याम मीरा सिंह

इस देश में एक विशेष वर्ग है जो सार्वजनिक रूप से अभिनय (एक्टिंग) में पारंगत है. एक तरफ वह शाखाओं में भगवा झंडे को पूजता है और चाहता है कि तीन रंग की जगह एक रंग का झंडा हो जाए. लेकिन शाखा से बाहर निकलते ही ‘तिरंगा’ प्रेम की एक्टिंग करने लगता है. फिर देखो इनकी ऐसी एक्टिंग कि हॉलीवुड भी फेल हो जाए.

बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधी हत्या के बाद RSS पर बैन लगाया था तो सरदार पटेल ने आरएसएस से बैन इस शर्त पर हटाया था कि आरएसएस के लोग भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक ‘तिरंगा’ ध्वज को मानेंगे. आप सोचिए आरएसएस का तिरंगा के प्रति क्या विचार रहा होगा कि आरएसएस को तिरंगे के सामने झुकने के लिए बल प्रयोग करके मजबूर करना पड़ा था, संघ ने तिरंगे को कांग्रेस का झंडा कहकर हमेशा नकारा था. खासकर इसके हरे रंग और सफेद रंग पर आरएसएस को आपत्ति रही है.

सोचिए आरएसएस तिरंगे से कितनी नफरत करता होगा कि उसे मजबूर करने के लिए सरदार पटेल को हस्तक्षेप करना पड़ा. दिसम्बर 1929 में कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में ”पूर्ण स्वराज” को राष्ट्रीय ध्येय घोषित करते हुए लोगों से आह्वान किया कि वे 26 जनवरी 1930 के दिन तिरंगा झंडा फहराएं और स्वतंत्रता दिवस मनाएं.

लेकिन आप हैरान होंगे कि इसके जवाब में आरएसएस के संस्थापक और तत्कालीन सरसंचालक डा. हेडगेवार ने बाकायदा एक आदेश पत्र जारी करके आरएसएस की शाखाओं से कहा कि वे तिरंगे को न फहराएं बल्कि भगवा झंडे को राष्ट्रीय झंडे के तौर पर पूजें. इस जानकारी से जुड़ा लेख बीबीसी पर्ण पढ़ने को मिल जाएगा.

हेडगेवार का यही DNA आरएसएस में आगे भी चला और आज भी अविघटित रूप से अनवरत जारी है. इस परंपरा का निर्वहन इतना हुआ कि साल 2002 तक आरएसएस अपने केन्द्रीय कार्यालय(नागपुर कार्यालय) पर कभी भी तिरंगा नहीं फहराता था, बल्कि भगवा झंडा लहराता था.

आरएसएस की इस करतूत का जवाब देने के लिए तीन लोगों-बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी ने 26 जनवरी, 2001 के दिन आरएसएस कार्यालय में घुसकर तिरंगा झंडा फहरा दिया था. इससे आरएसएस इतना कुपित हुआ कि उसने इन तीनों पर केस कर दिया. बाद में भी ये लोग आरएसएस के निशाने पर रहे, अगस्त 2013 में जाकर नागपुर की एक निचली अदालत ने वर्ष 2001 के एक मामले में तीनों आरोपियों को बाइज्जत बरी किया था.

मतलब जो आरएसएस आज दूसरों के घरों में जा-जाकर, मदरसों और मस्जिदों में जा-जाकर तिरंगा फहरा कर अपनी देशभक्ति साबित करता है साल 2002 तक वो इसी तिरंगे से इतनी नफरत करता था कि यही काम जब तीन लोगों ने उनके घर में घुसकर किया तो उनपर केस कर दिया गया, जो करीब 12 साल चला.

इस मामले के बाद ही नागपुर कार्यालय पर तिरंगा झंडा फहराया जाने लगा था, क्योंकि आरएसएस समझ गया था कि तिरंगे से नफरत करने वाले एजेंडे को सार्वजनिक रूप से अब आगे नहीं ढोया जा सकता. इसलिए सार्वजनिक रूप से आरएसएस ने तिरंगे से अपनी नफरत को त्याग दिया. लेकिन हिडन एजेंडे के रूप में इसे अभी जारी रखा हुआ है. इस केस को ‘नागपुर केस नंबर 176’ भी कहा जाता है. इसे लेकर द वायर पर सौरभ वाजपेयी का एक पूरा आलेख है.

भारतीय स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर जब दिल्ली के लाल किले से तिरंगे झण्डे को लहराने की तैयारी चल रही थी आरएसएस ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र (आर्गनाइज़र) में 14 अगस्त, 1947 के दिन लिखे एक अंक में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की जमकर निंदा की. उस आलेख का हिंदी अनुवाद सत्य हिंदी न्यूज वेबसाईट ने किया है.

आरएसएस ने तिरंगे के बारे में क्या लिखा आप इसे नीचे पढ़ लीजिए ”वे लोग जो किस्मत के दाँव से सत्ता तक पहुँचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा न इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा न अपनाया जा सकेगा। तीन का आँकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झण्डा जिसमें तीन रंग हों बेहद ख़राब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुक़सानदेय होगा”

आप सोच लीजिए कि आरएसएस तिरंगे को हटवाने के लिए कैसे उलुल जुलूल तर्क दे रहा था. खैर ये तो आजादी के दौर की बात है लेकिन आजादी के बाद भी आरएसएस अपने पुराने डीएनए के हिसाब से ही काम करता रहा है.

उसका हिडन एजेंडा एक ही है अंततः इस देश में जाति विशेष का राज स्थापित करना, जिसका भ्रामक नाम ‘हिन्दू राष्ट्र’ है, लेकिन है वह एक दो जातियों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए सार्वजनिक रूप से ओढ़ी गई ‘भेड़िए की खाल’ है. जो बाहर से कुछ है और अंदर से कुछ.

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर एक आम सभा को संबोधित करते हुए तिरंगे को नकारते हुए कहा था कि ‘’सिर्फ और सिर्फ भगवा ध्वज ही भारतीय संस्कृति को पूरी तरह प्रतिबिंबित करता है, हमें पूरा यकीन है अंततः पूरा देश भगवा ध्वज के सामने ही अपना सिर झुकाएगा.’’

अब सवाल ये उठता है कि आरएसएस को बनाने वाले हेडगेवार और उसका विस्तार करने वाले गोलवलकर को जिन्हें तिरंगे के तीन रंगों से मानसिक तनाव होता था, जिन्हें तिरंगे से मनोवैज्ञानिक असर पड़ता था, जिनका कहना था कि ‘तिरंगे’ से देश को नुकसान होगा. क्या उस आरएसएस को तिरंगे से मानसिक तनाव होना बंद हो गया है?

इसका जवाब ये है कि तनाव तो आज भी उतना ही है जितना हेडगेवार को था लेकिन आरएसएस के पास एक कला है कि वह समय के साथ तुरंत उन चीजों का अपहरण करने लगता है जिसका उसे राजनीतिक लाभ होना है.

प्रधानमंत्री जी ही अंदर बंद कमरे में ‘सावरकर’ की पूजा करते हैं और बाहर विदेशों में ‘गांधी’ होने की एक्टिंग करते हैं. अन्यथा गांधी का पूजक ‘गांधी’ की हत्या के आरोपी का भी पूजक कैसे हो सकता है. पर आरएसएस पर यही एक नकली एक्टिंग आती है जिसे प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंचों से करते हैं. कल परसों देख रहा था किस तरह बंगाल चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री कह रहे थे कि ‘बंगाल ने देश को राष्ट्रगान’ दिया.

जबकि आरएसएस के स्वयंसेवक स्पष्ट तौर पर मानते हैं कि रविन्द्रनाथ टैगोर ने ‘राष्ट्रगान’ अंग्रेजों की प्रशंसा में लिखा था. इसलिए वे ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान मानते ही नहीं. उसी परंपरा से निकले प्रधानमंत्री आज ‘जन गण मन’ पर मंत्रमुग्ध हो रहे हैं. और गजब का अभिनय भी कर रहे हैं.

आरएसएस के स्वयंसेवक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं. और वे लोग भी जानते होंगे जो आरएसएस की शाखाओं में गए हैं, या उसके कैम्पों में गए हैं, जिन्होंने आरएसएस के प्रचारकों को सामने से सुना है कि स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों ‘तिरंगा, संविधान और राष्ट्रगान के प्रति आरएसएस का आंतरिक मत क्या है और सार्वजनिक दिखावा क्या है.

दूसरी बात ये कि तिरंगा, संविधान और राष्ट्रगान पर आरएसएस के विचार जानने के लिए आपको इतिहास पढ़ने की जरूरत नहीं है, एकदम नहीं है. इनके कैंपों में दो मिनट बैठकर सुन आइए, आपका सारा भ्रम उतर जाएगा कि आरएसएस तिरंगा, संविधान या राष्ट्रगान से प्रेम करता है. दो मिनट में आपको आरएसएस की सार्वजनिक एक्टिंग और प्राइवेट एजेंडा का मालुम चल जाएगा.

यही एक कला है आरएसएस के पास, इसी धूर्तता के मामले में बाकी संगठन, पार्टियां आरएसएस से पीछे रह जाती हैं. आज जन गण मन और तिरंगा, जनमानस में राष्ट्र प्रेम के प्रतीक के रूप में स्थापित हो चुके हैं तो आज आरएसएस राष्ट्रगान और तिरंगे का सबसे बड़ा ‘रक्षक’ बन गया है.

जिस दिन इस देश में गोडसे सार्वजनिक रूप से स्थापित हो जाएगा उसी दिन गांधी की तस्वीरों को तोड़कर कचरे में फैंकने वाले आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे आगे होंगे. जिस दिन लोग तन-मन और धन से भगवामयी हो जाएंगे उसी दिन आरएसएस ऐसा पहला संगठन होगा जो लाल किले से तिरंगे को उखाड़ जमीन पर फैंक देगा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here