जेएनयू की कई ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ है। एक ख़ूबी ये है कि ये कैम्पस आपको डराता नहीं है। ग़रीब-वंचित परिवार के लोगों में बड़े सरकारी दफ़्तरों या आलीशान मॉल इत्यादि में घुसने में जो हिचक और झिझक होती है, JNU उस झिझक को ज़रा भी महसूस नहीं होने देता।
किताबों से परे असल मायनो में समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अहसास ये कैम्पस आपको कराता है और जिन विद्यार्थियों, शिक्षकों और कर्मचारियों के इन अधिकारों का हनन होता है, उसके लिए एकजुट होकर संघर्ष करता है। यहाँ समृद्ध तबक़ों से आने वाले छात्र भी वंचित समुदाय के छात्रों के पढ़ने के अधिकार के संघर्ष में पुलिस की लाठियाँ खाने सड़कों पर उतरते हैं क्योंकि ये कैम्पस आपको अन्याय और दूसरों के दर्द को महसूस करना सिखाता है।
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जेएनयू आपको अपने दिल और दिमाग़ की बात रखना सिखाता है। यहाँ ख़ाली बटुए और ग़लत अंग्रेज़ी का मज़ाक़ नही उड़ाया जाता, ये कैम्पस आपके जीवन के संघर्ष का सम्मान करता है। यहाँ आपका मूल्याकंन आपके विषय के ज्ञान और समझ पर किया जाता है, ना कि भाषा की अशुद्धियों पर। जेएनयू आपको सिर्फ सवाल का जवाब देना नही सिखाता, सदियों से दिए जा रहे जवाबों पर सवाल करना भी सिखाता है।
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जेएनयू देश के हर कोने में चल रहे हर जनवादी संघर्ष के पक्ष में अपनी आवाज बुलन्द करता है। इसलिए हमेशा सत्ता में बैठे लोगों की आँख में गड़ता है जेएनयू। आज जेएनयू को बचाने की लड़ाई पूरे देश के हर गाँव-देहात में रहने वाले उन बच्चों के सपनों को बचाने की लड़ाई है जो तमाम मुश्किलों के बावजूद ज्ञान के माध्यम से अपना और देश-समाज का जीवन बदलना चाहते हैं।
ये लड़ाई सिर्फ फ़ीस में बेतहाशा बढ़ोतरी की नही है, ये लड़ाई उस हिचक और झिझक से मुक्त कैम्पस को ज़िन्दा रखने की लड़ाई भी है और इस लड़ाई को देश के तमाम प्रगतिशील सोच के लोगों को मिलकर लड़ना होगा क्योंकि पाश कहते हैं कि “सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना”