क्या दलित पिछड़ों की बहुलता वाले इस देश को रामराज्य की जरूरत है ?

कर्मेंदु शिशिर ने बिहार के अपने निजी अनुभवों के साथ अकादमिक जगत के जातिवाद के बरक्स मंडल कमीशन को लेकर बेहद गहरी बात की है।

प्रस्तुत है कर्मेंदु शशिर का लेख-

“आज भी बातचीत में बहुत सारे लोग यह कहते हैं कि मंडल कमीशन के बाद जातिवाद बहुत बढ़ गया है। गोया इसके पहले समाज में पूरी तरह समानता थी, शांति थी। तब एकदम रामराज्य था। कैसा था रामराज्य? हमलोग छात्र थे तब बिहार के एक विश्वविद्यालय में 24 प्राचार्यों की नियुक्ति होनी थी। 24 में 24 एक ही जाति के प्राचार्य नियुक्त हुए। कमाल का रामराज्य!

बिहार इंटरमीडिएट बोर्ड का गठन हुआ। तब 168 कर्मचारी नियुक्त हुए उसमें 166 एक ही जाति के थे। अब आप इसे रामराज्य नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? मेरा कालेज एफलिएटेड कालेज था।उसके अध्यक्ष की जाति के लगभग 65-66 और सचिव की जाति के 55-56 प्राध्यापक नियुक्त हो गये। शेष दो ऊँची जातियों के 10-15 और तीन मुस्लिम और चार -पाँच पिछड़े। ऐसा था रामराज्य। जब मंडल कमीशन का दौर आया तो दलितऔर पिछड़ी जातियाँ जगी। उन्होंने प्रतिरोध शुरू किया। वे सिर्फ और सिर्फ अपने लिए संविधान में दिये अधिकारों की माँग ही कर रही थीं। लेकिन तमाम ड्राइविंग सीट पर बैठी ऊँची जातियों ने तिकड़म शुरू किया और यही खेल कम या ज्यादा अभी तक चल रहा है। बावजूद जातिवाद बढ़ गया है — यह आज कौन कह रहा है?

लालूजी की आप खूब आलोचना कीजिए लेकिन कल्पना कीजिए उस दौर में पूर्वी बिहार में टिकट लेने के बावजूद और खाली सीट होते हुए भी दलितों और पिछड़ों को लोकल ट्रेन में सीट पर बैठने नहीं दिया जाता था। एक बार बहत्तर छेद वाली गंजी पहने एक अस्सी साल के बूढे की अखबार में बैलेट पेपर के साथ तस्वीर छपी थी कि उसने बैलेट पेपर पहली बार देखा। आज तमाम दुर्दशा के बावजूद लालूजी मसीहा बने हुए हैं तो उसके पीछे ऐसी ही बात है उनके पीछे मजलूमों की ताकत है। उन्होने भले कुछ नहीं किया लेकिन ताकत दी, वाणी दी।

दुर्भाग्य यह है कि सवर्ण कृत्रिम जाति को लेकर अब भी एक मूर्खता भरी जिद्द बनाकर बाज नहीं आ रहे। ऐसे में अगर दलित या पिछड़ी जातियों से आप यह उम्मीद करे कि वे समानता का कोरस गाये? सवर्ण के पास कोई विकल्प नहीं।वे आत्ममंथन करे। कृत्रिम जातिवाद से खुद को मुक्त करें और आचरण तथा व्यवहार में समानतामूलक समाज बनाने में ईमानदार योगदान करे। उनको पढने – लिखने में मदद करे। भाईचारा लाये। यही सच्चा राष्ट्रवाद है। सच्ची देशभक्ति है।

बीते युग की लाश अब बदबू करने लगी है। उससे खुद को आजाद कर लें। खुली हवा में साँस ले और औरों को लेने दें।”

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