रेलवे बोर्ड ने गुरूवार 2 जुलाई को एक आदेश जारी किया है, जिसमें उसने कहा है कि नए पदों पर अगले आदेश तक कोई भर्ती नहीं की जाये. इसके अलावा सेफ्टी के पदों को छोड़कर अन्य पदों को 50 फीसदी तक सरेंडर किया जाए, साथ ही पिछले दो सालों में जितने भी पदों को क्रियेट किया गया, उसे फिर से रिव्यू किया जाए।
रेलवे बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि उक्त आदेश को नहीं मानने पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी. साफ़ है कि कोरोना का बहाना बना कर सरकार नए पदों पर भर्ती से बचना चाहती है लेकिन यह काम सिर्फ भर्ती में ही नहीं हुआ है।
रेलवे ट्रेनों में सफर करने वाले पैसेंजरों को 53 तरह की रियायतें देता था जिसमें दिव्यांगजन, कैंसर, एड्स, टीबी समेत अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों, वरिष्ठ नागरिक, राष्ट्रीय पदक विजेता व अवॉर्डी, पुलिस, सेना, पैरामिलिट्री शहीदों के परिवारीजन, छात्र, युवा, कलाकार, किसान, खिलाड़ी, मेडिकल प्रोफेशनल्स आदि भी शामिल थे।
इन्हें रेलवे अधिकतम 75 प्रतिशत तक की छूट टिकट की दर पर देता है, लेकिन अब हमे रेलवे का निजीकरण जो करना है तो कोरोना का बहाना लेकर सबसे पहले ये छूट खत्म की गई।
भारत में लॉक डाउन बाद में लगा पहले ये छूट खत्म की गई. 12 श्रेणियों में से केवल मरीजों, छात्रों और दिव्यांगजनों को ट्रेन टिकट के किराए पर छूट को छोड़कर बाकी सब श्रेणियों में छूट 20 मार्च की आधी रात से खत्म कर दी गई।