कल शाम भूल से एक टीवी चैनल की ओर आँख उठ गई। एक एंकराना ने नसीरुद्दीन शाह के ख़िलाफ़ मजमा लगा रखा था। गिला यह था कि नसीर ने कह दिया उन्हें भारत में डर लगता है।

बाद में चैनल की साइट ने भी वही ज़हर उगला: “जिस देश ने नसीरुद्दीन को इतना प्यार दिया, इतनी शोहरत दी …”। ज़ाहिर है, शाह को हर तरफ़ से घेर कर लगभग देशद्रोही ठहराने की देर थी।

लेकिन शाह ने जो कहा, उसका तो पूरा वीडियो मौजूद है। उन्होंने कहा कि उन्हें बच्चों के (पढ़ें भारत के) भविष्य को लेकर “फ़िक्र” होती है। गाय के नाम पर आदमी की मौत का ज़िक्र उन्होंने किया। पर डर की उन्होंने उलटे काट की।

“इन बातों से मुझे डर नहीं लगता, ग़ुस्सा आता है। और सही सोचने वाले हर इंसान को (हालात पर) ग़ुस्सा आना चाहिए, डर नहीं लगना चाहिए।” फिर नसीरुद्दीन ने यह भी कहा: “हमारा घर है। हमें कौन निकाल सकता है यहाँ से?”

इतनी साफ़ बात। और उस पर इतनी कलुषित जिरह।

नसीरुद्दीन को जैसे देश के सांप्रदायिक हालात पर ग़ुस्सा आता है, हमें टीवी के पथभ्रष्ट होने पर क्यों नहीं आना चाहिए?

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