कभी राममनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री नेहरू के रोजाना खर्च पर सवाल उठाया था तो राजनीति में हाहाकार मच गया था. उसकी चर्चा आज भी गाहे-ब-गाहे होती है.

लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री के खर्च पर उठते सवालों को दबा दिया जाता है. मैंने नहीं देखा कि किसी दिन मीडिया में पूछा गया हो कि जिस दौरान देश भर में आर्थिक तबाही की हालत है, प्रधानमंत्री के लिए 8400 करोड़ का विमान क्यों मंगाया गया?

कुछ दिन पहले ही शहरी मजदूर पैदल अपने घर भाग रहे थे. केंद्र और राज्य मिलकर उन्हें बस या ट्रेन नहीं दे सके और चुपचाप देखते रहे. दो-चार सौ लोग रास्ते में ही मर गए.

छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग, गर्भवती मांएं दो-दो हजार किलोमीटर पैदली चलीं.

कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है. भारत में करीब एक लाख दस हजार लोग कोरोना से मारे जा चुके हैं. 71 लाख से ज्यादा केस कन्फर्म हो चुके हैं. अर्थव्यवस्था माइनस 24 पर है. सारे कोर सेक्टर ध्वस्त हो चुके हैं.

करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. देश भर में तमाम लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. खबरें हैं कि सियाचिन और लद्दाख में तैनात सैनिकों के पास गर्म कपड़े नहीं हैं.

ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री के लिए 8400 करोड़ का स्पेशल विमान आया है.

प्रधानमंत्री ने खुद अपने मुंह से कहा कि मैं तो फकीर हूं, झोला उठाकर चल दूंगा. लोग मान भी गए और दोहराने लगे. लेकिन प्रधानमंत्री तो आपदा में अवसर ढूंढते हैं. इसी आपदा के दौरान अवसर देख उन्होंने अपने लिए 8400 करोड़ खर्च लिए.

जो लोग गाना गा रहे हैं कि दस लाख का सूट पहनने वाले प्रधानमंत्री में एक फकीरी है, वे आला दर्जे के चाटुकार हैं.

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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