
नहीं गिरा पाओगे.. बहुत वजनी है
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तुम्हीं ने तो मारी थी गोली उन्हें
सौ साल बीत गए…
बिस्तर पर पड़े हुए उस पाँच फीट पाँच इंच
के इंसान से
किस कदर ख़ौफ़ खाए हुए थे तुमलोग !
हिल चुका था तुम्हारे लूट-मार का वैश्विक साम्राज्य !!
आजतक ख़ौफ़ज़दा हो !
आज तक भय से उबरे नहीं !
किसके भूत का भय सता रहा है तुम्हें ?
और भविष्य भी सताता ही रहेगा ।
अंधो , पृथ्वी सूरज के चारों तरफ़ घूम रही थी
और तुम ब्रूनो को ज़िंदा जला रहे थे
गैलीलियो को कैद कर रखा था
‘ पूंजी’ पर मौन साध लिया तुम्हारे ‘विद्वानों’ ने
बेवकूफों , सचमुच हँसी आती है
तुम्हें पता ही नहीं है कि
लेनिन को ध्वस्त नहीं किया जा सकता !
नहीं गिरा पाओगे…बहुत वज़नी है !!
दुनियाभर के मेहनतकशों के हाथों में थमे
एक-एक हथौड़े का वज़न समझते हो ?
तुम्हे मालूम है कि इनके योग का मायने क्या होता है ?
तुम्हें मालूम है मुक्तिकामी जन-सैलाब के बहाव का दबाव ?
उसकी गति और उसकी ऊर्जा !!
संकट , तुम्हें पता है न ?
और कमज़ोर कड़ी पर पड़ने वाली मर्मान्तक चोट
थोड़ा याद कर लो !… डरते हो..??
हमारी पीढ़ी और आनेवाली नस्लों की
असंख्य आँखों में पलने वाले उन टेस लाल
सूरज सरीखे सपनों का वज़न
मापने की कूवत नहीं है तुममे…
अरे, उन असंख्य आँखों की पुतलियों के नीचे
चमकती हैं असंख्य लेनिन की मुस्कुराती ,
विचारमग्न , ठोस स्वप्नद्रष्टा आँखें !!
भविष्य की तरफ़ पीठ करके
मध्ययुगीनता की सड़ांध भरी बिष्टा करने वाले ,
जाहिल उन्मादियों !
नहीं गिरा पाओगे… बहुत वज़नी है !!