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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री लफंगों की भाषा और लहजे में ‘दीदी ओ दीदी’ कहते घूम रहे थे. तमाम आलोचना के बाद भी नहीं माने. उसका हासिल क्या हुआ?
नरेंद्र मोदी को अब ये समझने के लिए दूसरा जन्म लेना पड़ेगा कि सरकार पूरे देश की सरकार होती है. प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है. वे अपने गृहमंत्री के साथ 23-24 अप्रैल तक उस समय भी रैली करते रहे जब देश में रोजाना मौतों का आंकड़ा दो से ढाई हजार था.
प्रधानमंत्री को सरकार की और खुद अपने पद की मर्यादा को तार-तार करने की जरूरत क्यों पड़ी थी?
मकसद बहुत क्षुद्र था. एक राज्य में चुनाव जीतना. पूरी केंद्र सरकार की ताकत झोंकने जैसे भ्रष्टाचार के बाद भी वह मकसद हासिल नहीं हो पाया.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने के लिए जान लगा दी. अब तक के रुझान के मुताबिक ममता चुनाव जीतती दिख रही हैं. भारत के प्रधानमंत्री एक मुख्यमंत्री के हाथों विधानसभा चुनाव हार रहे हैं।
दिल्ली में विदेशी दूतावासों के अधिकारी यूथ कांग्रेस के लड़कों से आक्सीजन सिलेंडर के लिए मदद मांग रहे हैं. बीजेपी ने साबित किया है कि वह एक ऐसी खतरनाक पार्टी है जो चुनाव जीतने के लिए किसी हद जा सकती है.
उसके लिए लाखों लोगों के जीवन का कोई मोल नहीं है. उसके लिए अपने संवैधानिक दायित्यों का कोई मोल नहीं है. उसके लिए भारत की छवि का कोई मोल नहीं है.
उसपर रोजाना हजारों मौतों से कोई फर्क नहीं पड़ता. इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने भारत देश की पवित्र भूमि को नरक बना दिया है.
अब खबर आ रही है कि मोदी कोरोना पर एक्शन प्लान बनाने के लिए आपात बैठक कर रहे हैं. लगता है चुनाव हारने के बाद अब छवि बचाने का खेला शुरू कर दिया गया है.
उनको सिर्फ अपनी छवि की चिंता है. अब आज से मीडिया कुछ इस टाइप की हेडिंग लगाएगा- ‘पीएम मोदी एक्शन में, अब मोदी मंत्र से हारेगा कोरोना’.
ये हर नागरिक के दिमाग में स्पष्ट होना चाहिए कि बीजेपी जो कर रही है वह राजनीति नहीं है, वह राजनीतिक बर्बरता है.
(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से लिया गया है)