कृष्ण कांत

पहले बाबा रामदेव कह रहे थे कि नाक में सरसों का तेल डालने से कोरोना मर जाएगा. अब कह रहे हैं कि कोरोनिल खाने से कोरोना मर जाएगा. अगर सरसों का तेल कोरोना मार दे रहा था तो कोरोनिल खोजने की की जरूरत क्या थी? यानी सरसों के तेल वाली बात झूठी थी. वह बात बाबा ने चैनल का फुटेज खाने के लिए कही थी क्योंकि कोरोना का विशेषज्ञ बनकर ज्ञान बांट रहे थे. जाहिर है कि बदले में चैनल उन्हें पैसा दे रहे होंगे.

हैरानी की बात है कि बाबा ऐसे कारनामे हजारों हजार बार कर चुके हैं और कभी उनकी जवाबदेही तय नहीं हुई. कई बार डॉक्टरों की आपत्ति के बाद भी वे योग से तमाम गंभीर बीमारियां ठीक करने के झूठे दावे करते रहे हैं.

पहले वे कहते थे कि वे कई असाध्य रोगों का इलाज योग से कर सकते हैं, दवा की जरूरत नहीं है. वे कहते थे कि ‘दवाओं से इलाज के पीछे मत भागो, प्राणायाम से आप आजीवन स्वस्थ रह सकते हैं.’ फिर खुद ही दवा भी बेचने लगे. तब उनकी दवाएं अंग्रेजी दवाओं के विरोध के नाम पर बिकने लगीं. उनके किसी भक्त को कभी गंभीर रोग हुआ तो उसे जाना पड़ा अस्पताल ही, लेकिन बाबा की दुकान चलती रही.

बाबा ने पहले जिन उत्पादों का विरोध किया, बाद में वे सारे उत्पाद बनाकर बेचने लगे. जिस फटी ​जींस से बाबा की संस्कृति खतरे में ​थी, बाद में वही फटी जींस बेचकर बाबा ने संस्कृति की सुरक्षा सुनिश्चित की.

पहले बाबा चैनलों पर बताते थे कि मैगी, पास्ता, पैकेट बंद फास्ट फूड खाने का परिणाम बेहद गंभीर होता है. फिर बाबा मैगी से लेकर मसाला तक सब बेचने लगे और सब औ​षधीय गुणों से युक्त. किसी ने नहीं पूछा कि जब मैगी खाने से नुकसान होता है तो आप मैगी क्यों बेच रहे हैं?

बाबा आयुर्वेद के स्वनामधन्य ज्ञाता होकर वे सारे उत्पाद बेचते हैं जिनका आयुर्वेद में निषेध किया गया है.

बाबा पर कई बार आरोप लगे कि वे अपनी दवाओं में कुछ सामग्री, मानव और जीव-जंतुओं के अंगों का इस्तेमाल करते हैं, गैरकानूनी तरीके से उत्पादन करते हैं, लेकिन इस पर न कभी कोई जांच हुई, न रोक नहीं लगी.

बाबा ने एड्स का इलाज करने का दावा किया तो केंद्र सरकार ने उन्हें नोटिस थमाया. लोगों को गुमराह करने के आरोप में उन्हें नोटिस मिल चुका है. बाबा ने ऐसी दवा बनाने का दावा किया जिससे महिलाएं सिर्फ पुत्र को जन्म दे सकती हैं. इस दावे की जांच भी हुई थी, लेकिन बाबा बच निकले.

इन्होंने योग के जरिए कैंसर के इलाज का दावा किया तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसकी निंदा की थी. बाबा ने संजीवनी बूटी की खोज करने का दावा किया तो इसका मजाक बना. बाबा ने समलैंगिकता को ‘उपचार योग्य रोग’ बता डाला तो निंदा हुई.

बाबा भी अपनी फैक्ट्रियों से निकले कचरे को गंगा में बहाते रहे और बहती गंगा में नहाते रहे. कुछ बार जुर्माना देकर भी बाबा हर बार बेदाग ही रहे.

अब तक देखा जाए तो बाबा सबसे बुरे कोरोनिल बनाकर ही फंसे हैं. लेकिन रिकॉर्ड देखकर लगता नहीं कि उनका कुछ होगा. हो सकता है कि इम्युनिटी बढ़ाने के नाम पर उनका कारोबार और चमक उठे.

उत्तराखंड आयुर्वेद विभाग के लाइसेंसिंग ऑफिसर का कहना है कि पतंजलि के अप्लीकेशन पर हमने लाइसेंस जारी किया. इस अप्लीकेशन में कहीं भी कोरोना वायरस का जिक्र नहीं था. इसमें कहा गया था कि हम इम्युनिटी बढ़ाने, कफ और बुखार की दवा बनाने का लाइसेंस ले रहे हैं. विभाग ने पतंजलि को नोटिस भेजा गया है.

बाबा को लगता है कि इस देश में कोई सरकार नहीं है, असली साम्राज्य उन्हीं का है, इसलिए कोरोना की दवा बनाने के लिए उन्हें किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

बाबा का पूरा साम्राज्य ठगी पर टिका है और उसे अभयदान प्राप्त है. ​इसलिए बाबा निर्भय हैं. उनके झूठ और क्षद्म के साम्राज्य में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है आयुर्वेद का. आयुर्वेद आज अंग्रेजी पद्धति के आगे महान हो या न हो, लेकिन यह एक महान चिकित्सा शास्त्र है. जब अंग्रेजी चिकित्सा नहीं थीं, तब भारत इसी के दम पर जिंदा था. बाबा ने योग और आयु​र्वेद की खिचड़ी पकाकर लोगों को खूब उल्लू बनाया है. वे आज भी यही कर रहे हैं.

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