प्रधानमंत्री भूल जाते हैं कि कोरोना की लहर में गरीब और आम लोगों ने सौ रुपये लीटर पेट्रोल और डीज़ल ख़रीदे हैं।
अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त अनाज दिया लेकिन उन से उत्पाद शुल्क के रूप में डकैती के स्तर वसूली हुई।

उन्हीं लोगों ने दो सौ रुपये किलो तक सरसों तेल ख़रीदा और सिलेंडर इतना महँगा हो गया कि भराना छोड़ लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने लगे।

सरकार की ओर से अनाज दिया गया तो दूसरी तरफ़ उत्पाद शुल्क का डंडा चलाया गया। आम आदमी भूखा तो नहीं मरा मगर किसी तरह ज़िंदा रहा, जिसे अपनी कामयाबी बता रहे हैं।

मुफ़्त अनाज और लोगों के खाते में कुछ पैसा, उसमें से भी चल रही योजना का एडवांस पैसा, प्रधानमंत्री के पास बताने के लिए इससे ज़्यादा कुछ नहीं। उन्हें यह भ्रम है कि दुनिया में यही सबसे बड़ा अभियान था।

जबकि इससे कहीं ज़्यादा बजट की मदद से दुनिया के कई देशों ने लोगों के खाते में पैसे दिए। अमरीका में जिनकी नौकरी गई उन्हें छह सौ डॉलर मिला। शायद हफ़्ते के हिसाब से।

इसके अलावा जिनकी नौकरी थी उनके खाते में अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और तमाम देशों मैं भेजा। सीधे लोगों की जेब में पैसा डालने क मामले में भारत से कई देश बहुत आगे है। कंपनियों को सब्सिडी दी गई कि किसी को नौकरी से निकालें।

कनाडा में जिन कर्मचारियों को कोविड हुआ उसे इसके असर से उबरने के लिए छह हफ़्ते तक हर हफ़्ते 590 डॉलर दिया गया। वर्कर को हर सप्ताह 300 डॉलर दिया गया। रिकवरी केयर के नाम पर हर सप्ताह 500 डॉलर दिया गया।

ज़रा बताएँ प्रधानमंत्री कि भारत के लोगों को क्या दिया? करोड़ों की नौकरी चली गई उन्हें बीस किलो अनाज देकर तारीफ़ कर रहे हैं ?

प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि लोग उनके इन बोगस तर्कों पर फ़िदा नहीं हैं बल्कि मुस्लिम विरोधी नफ़रत की चपेट में आकर हाँ हाँ कर रहे हैं।

जिस दिन नफ़रत की यह चादर हटेगी उस दिन खुद समझ जाएँगे कि कोरोना की तबाही को सँभालने में अपनी नाकामी पर पर्दा डाल रहे हैं। अस्पताल को लेकर क्या किया इस पर बात भी नहीं करेंगे।

और तालाबंदी का फ़ैसला कैसे लिया इसे जान लेंगे तो समझ आएगा कि इस दौरान आपकी ज़िंदगी महामारी ने नहीं इनके ग़लत फ़ैसलों ने लोगों को मार दिया। बाक़ी आप आगे देख सकते हैं कि गुजरे वक्त में कैसे लूटा गया।

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