राजस्थान में पुरानी पेंशन लागू करने का फ़ैसला, अशोक गहलोत का एलान
मैं बिना किसी अगर मगर के चाहता हूँ कि केंद्र से लेकर राज्यों तक में पुरानी पेंशन की व्यवस्था लागू हो।
मैं यह भी जानता हूँ कि सरकारी कर्मचारियों का बड़ा तबका सांप्रदायिक हो चुका है और मुझसे नफ़रत करता है। फिर भी मैं हमेशा से इसका पक्षधर रहा हूँ कि पेंशन की पुरानी व्यवस्था ही ठीक थी। बुढ़ापा सम्मान से गुजरता था।
अगर कोई सरकार किसी रूप में मुझे भी पेंशन देगी तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करूँगा। क्योंकि बुढ़ापा तो सबका आता है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में इसकी घोषणा की है। इस घोषणा से पीछे हटना आसान नहीं होगा। फ़िलहाल यह एक बड़ा एलान तो है ही।
अगर इसे लागू करेंगे तो अशोक गहलोत इस फ़ैसले के लिए याद किए जाएँगे। उन्होंने सही फ़ैसला लिया है और इसके बाद सभी राज्यों में पुरानी पेंशन लागू करने का आंदोलन ईमानदारी से चलना चाहिए।
अगर कर्मचारी नेहरू को मुसलमान बताने का सुख चाहते हैं तो वो भी सरकार को बता दें कि हमें रोज़ नफ़रत का सुख देते रहें और सैलरी भी आधी कर लें।
अगर समझ है तो यह सब छोड़ कर पुरानी पेंशन को बहाल कराएँ। इससे देश की आर्थिक तरक़्क़ी बढ़ेगी। बुढ़ापे में खर्च करने लायक़ रहेंगे।
कांग्रेस के भीतर के अर्थशास्त्री भी इस फ़ैसले से हिल गए होंगे। नव उदारवादी नीतियों को लागू करते करते दस उद्योगपति ही अमीर हुए और जनता गरीब होती चली गई ।
अशोक गहलोत के इस क्रांतिकारी फ़ैसले ने नव उदारवादी नीतियों की सनक की नकेल धर ली है। यह लड़ाई अब शुरू हुई है। राजनेता के स्तर का फ़ैसला है। पुरानी पेंशन की बहाली चाहने वाले ज़ोर लगाते रहें। सफलता मिलेगी।
इस फ़ैसले को घातक बताने वाले एक से एक अर्थशास्त्री अंग्रेज़ी अख़बारों में लिखेंगे कि सरकार को पेंशन नहीं देनी चाहिए। ये बर्बादी आएगी वो बर्बादी आएगी।
हमला अंग्रेजी के अखबार और संपादक से शुरू होगा और हिन्दी के अख़बारों में भी पहुँचेगा।
जिन्हें पेंशन नहीं चाहिए उन्हें मोदी जी को पत्र लिख देना चाहिए कि हमें पेंशन नहीं चाहिए और आप भी विधायक और सांसद के लिए मिलने वाली पेंशन छोड़ दें ।