Ravish Kumar
Ravish Kumar
रवीश कुमार

तो क्या असम के मुख्यमंत्री ने नागरिकता संशोधन क़ानून से बग़ावत कर दी है? सोनेवाल ने कहा है कि इस क़ानून के चलते कोई भी विदेशी असम की धरती पर नहीं आ सकता। असम पुत्र होने के नाते कभी किसी विदेशी को यहाँ बसने नहीं दूँगा। सोनेवाल कभी ऐसा नहीं होने देगा।

सोनेवाल का यह ट्विट केंद्र सरकार और गोदी मीडिया के बोगस प्रोपेगैंडा को ध्वस्त करता है कि लोग इस क़ानून को नहीं समझे। जब बीजेपी का ही मुख्यमंत्री इस विभाजनकारी क़ानून को नहीं समझ पा रहा है तो फिर कौन समझना बाक़ी है।

आख़िर सोनेवाल किस विदेशी के नहीं बसने की बात कर रहे हैं? क्या वे हिन्दू शरणार्थियों के बारे में भी कह रहे हैं? बिल्कुल। वर्ना वे तीन देशों से आने वाले हिन्दू बौद्ध जैन पारसी, ईसाई और सिख को असम में बसाने की बात करते।

असम आंदोलन विदेशी को धर्म के आधार पर नहीं बाँटता है। इसलिए वहाँ इस क़ानून का विरोध हो रहा है। सोनेवाल ने भी अपने ट्विट में यही कहा है कि किसी विदेशी को बसने नहीं देंगे।

सोचिए इस क़ानून का विरोध मोदी सरकार में मंत्री रह चुके और बीजेपी के मुख्यमंत्री सोनेवाल ही कर रहे हैं।

क्या अब प्रधानमंत्री सोनेवाल को भी अर्बन नक्सल करेंगे?

इस क़ानून से अगर असम को बाहर रखना पड़ेगा तो फिर यह क़ानून है ही क्यों ? और आने से पहले असम की बात क्यों नहीं सुनी गई?

तो क्या सोनेवाल का विद्रोह यह बता रहा है कि केंद्र सरकार इस क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर या असम के बारे में फ़ैसला पलटने जा रही है? जिसका श्रेय सोनेवाल को देनी की तैयारी की गई है?

मुझे लगता है कि बीजेपी के नेताओं को नागरिकता क़ानून के समर्थन में एक रैली लेकर अपने मुख्यमंत्री सोनेवाल के घर जाना चाहिए ?

(ये लेख पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)

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