पिछले कुछ वर्षों से भारत की राजनीति में सावरकर की चर्चा तेज हुई है जिसकी प्रमुख वजह है कि अधिकतर राज्यों और केंद्र में भाजपा की सरकार है और ये पार्टी जिस विचारधारा को मानती है उसे रचने-गढ़ने में सावरकर का बहुत बड़ा योगदान है।

क्योंकि उन्हें वीर सावरकर कहकर प्रचारित किया गया है इसलिए उसके काउंटर में उनकी माफीवीर छवि को आगे रखा जाता है और बताया जाता है कि कैसे उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांग ली थी।

हालांकि उनके राजनैतिक स्टैंड को ज्यादा तूल देकर जघन्य अपराधों और घिनौने विचारों को ढंकने की कोशिश की जाती है। जिससे मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार को जस्टिफाई करने की उनकी मानसिकता सबके सामने नहीं आ पाती है, हिंदू राष्ट्र की उनकी चाहत जाहिर नहीं हो पाती है।

सावरकर के इन्हीं शर्मनाक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए पत्रकार सिद्धार्थ रामू लिखते हैं- हिंदू राष्ट्र, मनुस्मृति और मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार के बारे में सावरकर के विचार- संदर्भ सावरकर का जन्मदिन( 28 मई)

हिंदू राष्ट्र का आधार वर्ण-व्यवस्था और ब्राह्मणों की सर्वोच्चता होगी

सावरकर का कहना है कि ‘चातुर्यवर्ण या वर्ण व्यवस्था, हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना का मूलाधार है.’ ‘वे यहीं नहीं रुकते, इससे भी आगे बढ़कर वे कहते हैं कि ‘ब्राह्मणों का शासन, हिंदू राष्ट्र का आदर्श होगा.’ वे पेशावाओं के शासन को हिंदू राष्ट्र का आदर्श रूप मानते थे.

मनुस्मृति वेदों के बाद सबसे पूजनीय ग्रंथ है

सवारकर का कहना है कि ‘मनुस्मृति ही वह ग्रन्थ है, जो वेदों के पश्चात हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए अत्यंत पूजनीय है तथा जो प्राचीन काल से हमारी संस्कृति, आचार, विचार एवं व्यवहार की आधारशिला बन गया है। यही ग्रन्थ सदियों से हमारे राष्ट्र की ऐहिक एवं पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है।

आज भी करोड़ों हिन्दू जिन नियमों के अनुसार जीवन यापन तथा व्यवहार-आचरण कर रहे हैं, वे नियम तत्वतः मनुस्मृति पर आधारित हैं। आज भी मनुस्मृति ही हिन्दू नियम (कानून) है।’ (सावरकर समग्र, खंड 4, 2000 पृष्ठ 415)

मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार हिंदुओं का नैतिक और ऐतिहासिक कर्तव्य है

सावरकर मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार को हिंदुओं का नैतिक, साहसिक और ऐतिहासिक कर्तव्य मानते हैं। अपनी किताब सिक्स ग्लोरियस इकोज ऑफ इंडियन हिस्ट्री में इस बात के पक्ष में तर्क दिया है कि, क्यों मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार जायज है।

वे इतने पर ही नहीं रूकते हिंदुओं को ललकारते हुए कहते हैं कि “ यदि अवसर उपलब्ध हो तो ऐसा न करना कोई नैतिक या वीरतापूर्ण काम नहीं है,बल्कि कायरता है”।

(See Chapter VIII of the online edition made available by Mumbai-based Swatantryaveer Savarkar Rashtriya Smarak)। उनकी यह किताब 1966 में मराठी में प्रकाशति हुई थी। उसका अंग्रेजी में अनुवाद उपलब्ध है।

यही सावरकर हिंदू राष्ट्र के आदर्श नायक हैं।

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