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दिल्ली दंगों के पहले का आतंकी “कपिल बैसला” याद है? जिसने शाहीनबाग में फायरिंग करते हुए कहा था “हमारे देश में सिर्फ हिंदुओं की चलेगी”

उसे मार्च महीने में बेल मिल गई है। किन तर्कों पर मिली है पता है? “कि समाज में उसकी गहरी रुचि है, समाज से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा इसपर एक पत्नी और एक बच्ची के पेट की जिम्मेदारी है” ये वे तर्क हैं जो कपिल के वकील ने अदालत में दिए जिनके बल पर उसे अदालत से जमानत मिली है।

लेकिन सफूरा नाम की एक गर्भवती औरत अभी भी जेल में है। उसे बेल भी नहीं मिल रही। जिसका अपराध भी सिद्ध नहीं हुआ है। सिर्फ और सिर्फ व्याख्याओं के आधार पर जेल में है।

आप ईमानदारी से जांच करिए, तथ्य खंगालिए। यदि अपराधी साबित हो जाए तो जरूर जेल में डाल दीजिए। लेकिन वह फिलहाल गर्भवती है तो उसे बेल तो atleast मिलनी ही चाहिए।

मेरा एक ही सवाल है आपसे सफूरा के पेट में जो बच्चा या बच्ची है! उसे जेल में डालने का हक किसने दिया है? क्या उसका प्राकृतिक अधिकार नहीं है कि वह एक स्वस्थ्य माहौल में जन्म ले?

बात केवल एक गर्भवती महिला की नहीं है, उस अजन्मे शिशु के प्राकृतिक अधिकारों की भी है। उसे पूरा अधिकार कि वह एक स्वस्थ्य माहौल में जन्म ले।

(ये लेख पत्रकार श्याम मीरा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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