आज उत्तरप्रदेश के एक मुख्यमंत्री की पुण्यतिथि और एक मुख्यमंत्री का जन्मदिन है।

इस मौके पर JNU शोधार्थी जयंत जिज्ञासु ने एक लेख डाला है जिसे साभार प्रकाशित किया जा रहा है-

उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल आदरणीय रामनरेश जी की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति को नमन, जिन्होंने कर्पूरी जी के साथ सामाजिक न्याय की जोत जलाई। जैसे बिहार में कर्पूरी जी की सरकार को गिरवाकर जनसंघियों ने रामसुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाने का तिकड़म किया, वैसे ही युपी में रामनरेश जी की सरकार को अस्थिर कर बनारसी दास को और हरियाणा में ताऊ देवीलाल को हटा कर भजनलाल को सीएम बनवाया।

यह भी जोड़ दें।

कर्पूरी ठाकुर और रामनरेश यादव के सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता से तथाकथित उच्च जाति के ज्ञानी-ध्यानी लोग इस कदर चिढ़ते थे कि भद्दी-भद्दी गालियां उन्हें और उस वक्त केंद्र में मंत्री रहे जगजीवन राम जी को दी गईं:
दिल्ली से चमडा भेजा संदेश
कर्पूरी केश बनावे भैंस चरावे रामनरेश.

उस मुलायम सिंह जी को जन्मदिन मुबारक जिन्होंने बाबरी ढाने जा रहे कारसेवकों पर गोलियां चलवाकर इस देश के अकलियतों का मुल्क की मिट्टी से भरोसा टूटने से बचा लिया। उस नेताजी को दिली बधाई जिन्होंने निजी मेडिकल कॉलेजों में पीजी स्तर पर भी आरक्षण दिया, जिसे अजय सिंह बिष्ट ने सत्ता में आते ही खत्म कर दिया।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने एक बार बतौर पत्रकार अपने कार्यक्रम रुबरू में मुलायम जी से पूछा था, “सुना है, आप सपा का आलीशान कार्यालय बनवा रहे हैं?” तो मुलायम सिंह जी ने प्रत्युत्पन्नमति से जवाब दिया, “समाजवाद के माने गन्दगी में रहना तो नहीं है। साफ़-सुथरा कार्यालय रहेगा तो उसमे ग़रीब लोग ही तो आके बैठेंगे-रहेंगे-समस्याओं को सुनायेंगे। इसलिए, उस कार्यालय से ग़रीबों के हितों का काम समाजवादी ढंग से होगा”।

नेताजी के उरूज के वक्त नारा खूब गूंजा था:

कपडा-रोटी सस्ता होगी
दवा-पढाई मुफ्ती होगी।

पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर द्वारा लोकसभा में दिये गये भाषण का एक अंश बहुत कुछ बयां करता है, “किसी के चरित्र को गिरा देना आसान है, किसी के व्यक्तित्व को तोड़ देना आसान है। लेकिन, हममें और आपमें सामर्थ्य नहीं है कि एक दूसरा लालू प्रसाद या दूसरा मुलायम सिंह बना दें”।

देश के सबसे बडे सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री व देश के रक्षा मंत्री रहे नेताजी अपनी खूबियों-खामियों के साथ अपने आप में अनोखी शख्सियत हैं। उनकी उम्र दराज़ हो!

जयंत जिज्ञासु, JNU शोधार्थी

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