प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर अपनी इमानदारी को लेकर कहा था कि मैं ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’। लेकिन आज जब मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने के करीब है तब सरकार पर खुद ही कई मामलों में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा हुआ है।

इसी के मध्यनज़र लगभग पांच साल बाद मोदी जी के मंत्रिमंडल की स्वच्छता को मापने के लिए सूचना के अधिकार के तहत एक आरटीआई दाखिल की गई थी।

आरटीआई में प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछा गया कि साल 2014 से लेकर अगस्त 2017 तक मोदी कैबिनेट में कितने मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपो के तहत मामले दर्ज किए गए।

लेकिन साफ नियत सही विकास का राग आलापने वाली सरकार ने अपने भ्रष्टमंत्रियों के नाम बताने से इंकार कर दिया है और जवाब में पीएमओ ने कहा कि जरूरी कार्रवाई करने के बाद रिकॉर्डों को एक जगह नहीं रखा जाता और वे इस कार्यालय की विभिन्न इकाइयों एवं क्षेत्रों में फैले हुए हैं।

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साथ ही ‘ये प्राप्त शिकायतें भ्रष्टाचार और गैर-भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों समेत कई तरह के मामलों से जुड़ी होती हैं. आवेदक ने अपने आवेदन में केवल भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों के विवरण मांगे हैं।’

कार्यालय ने कहा, ‘इन सभी शिकायतों को भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों के तौर पर पहचानना, जांचना और श्रेणी में रखना जटिल काम हो सकता है।’ मांगी गई सूचनाओं के मिलान के लिए कई फाइलों की विस्तृत जांच करनी होगी।

इसलिए ये जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7(9) के तहत नहीं दी जा सकती है। हाल ही में सीबीआई विवाद में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री द्वारा रिश्वत लेने का आरोप लगा है।

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मोदी सरकार में कोयला एवं खनन राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी पर सीबीआई अधिकारियों की जांच को प्रभावित करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है।

सरकार को डर है कि भ्रष्टमंत्रियों के नाम सार्वजनिक किए जाने के कारण लोकसभा चुनावों में सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ बताने में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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