एकदिन उन्हें भी बोलने से डर लगेगा जो आज किसी को बोलने से डराते हैं। जो बोलने से डरते हैं वो धीरे धीरे अपनी चुप्पी की जेल में बंद हो जाएँगे। बोलना अब बचा नहीं है। टेक्नॉलजी ने ऐसा समाज और सरकार मुमकिन बना दिया है कि आपको पता नहीं कि सरकार आपके बारे में क्या सोचती है लेकिन सरकार को दिख जाता है कि आप उसके बारे में क्या सोच रहे हैं।
जो लोग मशीन बन चुके हैं वो जल्दी ही मशीन का पुर्ज़ा बन जाएँगे जिन्हें घिस जाने पर बदला जाता रहेगा। अगर आप प्रेस क्लब नहीं जा सकते तो अपने कमरे में मार्च कीजिए। बाथरूम में चिल्ला चिल्ला कर बोलिए। ताकि आपका बोलना बचा रहे। चलने का अवशेष आपके कमरे में बचा रहे।
सवाल प्रेस की आज़ादी का नहीं है। सवाल उस पाठक की आज़ादी का है जो अब पाठक नहीं रहा। इसलिए अपने पाठक होने को बचाने के लिए ऐसे मार्च में जाइये। सिर्फ जयकारे लगाने के लिए ही आपको साहसिक होने की छूट है। सवाल के लिए नहीं। रोज़ इस पर हमले हो रहे हैं। रोज़ आप ख़ुशी के मारे नाच रहे हैं।
यह भी कर सकते हैं कि ऐसी गिरफ़्तारियों पर खीर पुडी बनाइये। भंडारा कीजिए। ख़ुश होइये। आइये कमेंट बॉक्स में उनकी ख़ुशी का इज़हार होने दीजिए जो ऐसी गिरफ़्तारियों को सही मान रहे हैं। चुप हो रहे हैं। बोलने पर डराने वाला भारत नया नहीं बुज़दिल इंडिया है। बुज़दिल इंडिया के इन नागरिकों के सम्मान में घर घर में सत्यनारायण पूजा हो।
जब लोग ट्रांसफ़र पोस्टिंग के लिए मन्नत माँग सकते हैं, तो क्यों न बोलने के ख़त्म हो जाने पर उत्सव मनाएँ। सिर्फ मंत्रोच्चार बचा रहे। सिर्फ जयकारे बचे रहें। बाकी बोलना धीरे धीरे ख़त्म होता रहे। आप जो नहीं देख रहे हैं, याद रखिएगा आप भी देखे जा रहे हैं।
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शिशिर सोनी