जम्मू-कश्मीर के तीन पत्रकारों को ‘फ़ीचर फ़ोटोग्राफ़ी’ श्रेणी में इस वर्ष का पुलित्ज़र पुरस्कार मिला है. मुख्तार खान, दार यासीन और चानी आनंद को यह पुरस्कार पिछले साल अगस्त में 370 हटाये जाने के बाद से लॉकडाउन में पड़े जम्मू-कश्मीर के असली हालात सामने लाने के लिए मिला है.
पुरस्कृत तस्वीरें कश्मीर की जो कहानी सामने लाती हैं, उससे भारतीय टीवी मीडिया के ‘कश्मीर में सब सामान्य है’ के राग के फ्रॉड व बेईमानी की भी कलई खुलती है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह बेईमानी आपराधिक बेईमानी है, पत्रकारिता के पेशे के साथ भी और मनुष्यता के साथ भी.
बहरहाल, मेरे लिए यह गर्व का क्षण है कि मुख्तार खान, दार यासीन और चानी आनंद को पुलित्ज़र मिला है. तीनों असोसिएटेड प्रेस के लिए काम करते हैं.
पूरी दुनिया में पत्रकार किसी न किसी संकट का सामना करते हुए ही अपना काम कर रहे हैं, कश्मीर में यूएपीए का शिकार बन रहे हैं और बलूचिस्तान के हैं तो साजिद हुसैन की तरह क़त्ल कर दिये जा रहे हैं. एक फ़ोटो जर्नलिस्ट को तो सबसे अधिक जोख़िम उठाना पड़ता है.
शराब की भगदड़ को संकट में फंसे मज़दूरों को कोसने का बहाना बना देने वाले सुधीर चौधरी जैसे लोग पत्रकार नहीं हैं. इन्हें सब चंगा ही दिखेगा और ये हमेशा सत्ता के प्रिय बने रहेंगे.
(ये लेख पत्रकार देवेश के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)