टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की आज की ख़बर के अनुसार भारत ने कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज़ के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन नाम की जो मलेरिया-रोधी दवा भारी मात्रा में अमेरिका को भेजी है, उसकी मुम्बई में इतनी कमी है कि वह बीएमसी के डॉक्टरों तक के लिये उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

कोरोना का इलाज़ करने वाले डॉक्टरों और अन्य चिकित्साकर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिये यह दवा काफी उपयोगी मानी जा रही है। इसके बावज़ूद ट्रम्प की धमकी और बाद में अनुरोध के बाद पीएम मोदी ने अपने देश की ज़रूरतों को अनदेखा कर अमेरिका को इस दवा के निर्यात का दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला लिया।

कोरोना से बचाव के लिये बीएमसी डॉक्टरों, नर्सों, वार्ड बॉय, स्वीपर और कुछ रोगियों के रिश्तेदारों के लिये एचसीक्यूएस 400 टैबलेट का एक कोर्स पहले से ही निर्धारित है। टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के सार्वजनिक अस्पतालों में कई स्वास्थ्यकर्मियों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यूएस) की साप्ताहिक खुराक नहीं मिल पाई है।

दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत सरकार पर दबाव डाला था कि वह अमेरिका को इस मलेरिया-रोधी दवा का निर्यात करे, अन्यथा अमेरिका बदले की कार्रवाई करेगा। हालांकि विवाद बढ़ने पर ट्रम्प ने बाद में अपनी भाषा में सुधार कर लिया था।

कुछेक नागरिक अस्पतालों में वहां के मेडिको ने टाइम्स से कहा कि Covid – 19 ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों और अन्य लोगों को इस निवारक दवा की तीसरी खुराक नहीं मिली। एक नागरिक अधिकारी ने कहा कि हो सकता है स्टॉकिस्टों ने अमेरिका की मांग के कारण इसकी जमाखोरी कर ली हो।

इस बारे में टिप्पणी के लिए बीएमसी के अधिकारी उपलब्ध नहीं थे। स्वास्थ्य मंत्रालय के आज के बुलेटिन के अनुसार, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की अनुमानित आवश्यकताओं का 3 गुना स्टॉक देश में मौज़ूद है। फिर सवाल उठता है कि वह बीएमसी डॉक्टरों को क्यों नहीं मिल रहा है?

(राजेश चंद्र की फेसबुक वॉल से साभार)

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