लोकतंत्र हमेशा पीड़ित की हैसियत देखकर खतरे में आता है. जैसे यूपी में भाजपा नेता के बेटे ने पत्रकार का हाथ-पैर तोड़ दिया तो लोकतंत्र के कान में जूं तक नहीं रेंगी. पत्रकार का अपराध ये था कि नेता जी के खिलाफ खबर लिख दी थी.

उधर त्रिपुरा में तो और गजब हुआ. अखबार ने घोटाले की खबर छापी तो उसकी 6000 प्रतियां जब्त करके जला दी गईं.

आरोप है कि राज्य के कृषि विभाग में 150 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है. ‘प्रतिबादी कलम’ नाम का अखबार पिछले तीन दिनों से इस रिपोर्ट को सीरीज में छाप रहा था.

सुबह बंटने जा रहीं अखबार की करीब 6,000 प्रतियां छीनकर जला दी गईं. अखबार को बंटने से पहले ही फूंक दिया गया, लेकिन लोकतंत्र खतरे में नहीं आया.

लोकतंत्र पर आया खतरा सिर्फ तभी पहचाना जाता है जब कोई ताकतवर आदमी फंस जाता है. नेता जी खुद फंस जाते हैं तब भी कहते हैं कि लोकतंत्र पर खतरा है. आजकल तो कई लोग खुद को देश बताते घूम रहे हैं.

लोकतंत्र पर असली संकट तभी है जब किसी नेता पर संकट हो, पार्टी पर संकट हो, एजेंडे पर संकट हो, अघोषित प्रवक्ताओं पर संकट हो… वरना तो हाथरस जा रहे पत्रकारों को पकड़ कर जेल में ठूंस दिया गया और लोकतंत्र को हिचकी तक नहीं आई.

खराब मिड डे मील पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकार पर मुकदमा लाद दिया गया. गुजरात में एक पत्रकार ने सूत्रों के हवाले से खबर लिख दी कि सीएम से आलाकमान नाराज है तो उस पर देशद्रोह का केस ठोंक दिया गया. ऐसे दर्जनों कांड हैं.

लेकिन वे आम पत्रकारों से जुड़े हैं इसलिए ऐसी जालिम घटनाओं को लोकतंत्र चुपचाप लील जाता है और डकार भी नहीं लेता.

( यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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