प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों से भी झूठ क्यों बोले कि “अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारी अर्थव्यस्था अच्छी स्थिति में है.”
माना कि वे कोरोना से पहले ही अर्थव्यवस्था को न संभाल पाने के अपराधबोध में होंगे, लेकिन मुख्यमंत्रियों को सच बात बतानी चाहिए थी।
सभी क्रेडिंग रेटिंग एजेंसियां जो अनुमान जता रही हैं, उनके हिसाब से भारत आर्थिक मोर्चे पर कई दशक पीछे जा सकता है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च का अनुमान है कि 2020-21 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत रह सकती है। यह 29 वर्षों में सबसे कम वृद्धि दर होगी।
अगर ऐसा होता है तो 1991-92 के बाद यह पहला मौका होगा जब जीडीपी इतने नीचे आएगी। इसके पहले 1991-92 में भारत की जीडीपी में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
एजेंसी का अनुमान है कि यदि लॉकडाउन मध्य मई से आगे जारी रहता है और क्रमिक वसूली केवल जून 2020 से ही शुरू होती है, तो जीडीपी की वृद्धि माइनस 2.1 प्रतिशत तक फिसल सकती है, जो पिछले 41 वर्षों में सबसे कम होगी और वित्त वर्ष 1951-52 के बाद से इतनी बड़ी गिरावट का छठवां मौका होगा।
विश्व बैंक के अनुसार, देश की आर्थिक वृद्धि दर 2020-21 में 1.5 फीसदी से 2.8 फीसदी रह सकती है। इसका भी कहना है कि 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद से यह सबसे धीमी वृद्धि दर होगी।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि भारत की वृद्धि दर 1.9 फीसदी रहेगी।
अपने वैश्विक आर्थिक आउटलुक में फिच रेटिंग्स ने कहा कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर अप्रैल 2020 से मार्च 2021 (FY21) के दौरान 0.8 फीसदी तक रह जाएगी।
द कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया इंडस्ट्री (CII) ने भी कहा है कि यदि कोरोना का फैलना जारी रहा तो देश की जीडीपी 0.9 फीसदी के स्तर तक पहुंच सकती है.
सभी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वृद्धि दर का अनुमान निराशाजनक स्तर तक घटा दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था पहले से गर्त में थी। अब तो दुनिया भर में महामंदी जैसी हालत है।
लेकिन प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि चिंता करने की जरूरत नहीं है, टेंशन न लें। क्या सच में कोई टेंशन नहीं है?
(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)