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Amit Shah

सितंबर, 2008 में दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट हुए। कांग्रेस के शिवराज पाटिल गृहमंत्री थे। दिन भर में दो तीन बार नये नये सूट बदल कर दिखाई पड़े। जनता चिढ़ गई कि देश पर ऐसा गंभीर संकट है और ये आदमी घड़ी घड़ी सजने-संवरने में लगा है। उनकी खूब आलोचना हुई। कांग्रेस ने उनका इस्तीफा तो नहीं लिया लेकिन आपात बैठक में उनको नहीं बुलाकर यह संदेश दे दिया कि सुधर जाओ। कांग्रेस सरकार में शामिल कुछ नेताओं ने कहा कि वे सरकार पर बोझ बन गए हैं।

इसके बाद नवम्बर में मुम्बई हमला हुआ तो पाटिल फिर निशाने पर आ गए कि इनसे आंतरिक सुरक्षा नहीं संभल रही। उनका इस्तीफा ले लिया गया और उन्होंने जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। उसके बाद चिदंबरम ने पद संभाला था।

लेकिन चूंकि आजकल मोदी जी ‘न्यू इंडिया’ बनाने में व्यस्त हैं इसलिए लोकतंत्र से सामूहिक जिम्मेदारी का लोप कर दिया गया है। कहने को बीजेपी और इसके नेता एकमात्र देशभक्त हैं, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं है।

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शिवराज पाटिल कम से कम सूट बदलकर ही सही, मौजूद तो थे। यहां गृहमंत्री चार दिन से सीन से गायब हैं। उनके ट्विटर हैंडल ने गवाही दी है कि वे कल सावरकर को श्रद्धांजलि दे रहे थे और आज नानाजी देशमुख व चंद्रशेखर आजाद को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

अब मोदी जी को चाहिए कि एक नया श्रद्धांजलि मंत्रालय बनाएं और शाह को गृहमंत्री की जगह श्रद्धांजलि मंत्री बना दें।

लेकिन पीएम खुद अपनी आदत से मजबूर हैं। न कम रघुवर, न कम कन्हैया। जब पुलवामा हमला हुआ था तब वे भी तो जिम कार्बेट पार्क में नौका विहार कर रहे थे और किसी फिल्म शूटिंग कर रहे थे। जिस दिन देश पर हमला हुआ, मोदी जी शाम तक गायब रहे और कहा गया कि अधिकारियों को निर्देश था कि उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए। शाम तक उन्हें सूचना ही नहीं हुई के देश पर हमला हुआ है। हमले के अगले दिन ही मोदी रैलियां कर रहे थे और अमित शाह भी पुलवामा का पोस्टर लगाकर वोट मांग रहे थे। पुलवामा हमले को लेकर जब सर्वदलीय बैठक हो रही थी तब भी प्रधानमंत्री उस बैठक में न जाकर रैली कर रहे थे।

गजब है कि आजतक न पुलवामा हमले की जांच हुई, न किसी की जिम्मेदारी तय हुई कि 300 किलो विस्फोटक भरी गाड़ी सेना के काफिले में कहां से आई? उसके पीछे कौन था? कुछ नहीं पता।

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पाटिल सुरक्षा में नाकाम रहे थे तो इस्तीफा दे दिया था। इनकी नाकामी पर भी इन्होंने वोट मांगे कि हमारी नाकामी के लिए हमें वोट दे दो, क्योंकि हम स्वनामधन्य देशभक्त हैं। अब चूंकि ये देशभक्त हैं तो इनकी चूक, इनकी नाकामी सब माफ हो जाएगी, क्योंकि ये हिन्दुओं को मुसलमान से लड़ाकर अपनी देशभक्ति साबित कर चुके हैं। न कपिल मिश्रा को पार्टी से निकालेंगे, न गृहमंत्री जिम्मा लेंगे, न घर से निकलेंगे, न इस्तीफा देंगे। चुनाव में दरवाजे दरवाजे पोस्टर लगा रहे थे, लेकिन जब लोगों को मारा जा रहा था, तब गायब रहे और अब भी गायब हैं।

इनको लोकतंत्र की जिम्मेदारी पता होती तो ये डेढ़ लोगों की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी वाली सरकार चलाते। धर्म, ईमान, देश, संस्कृति सब बेचकर इनको बस वोट और सत्ता सुख चाहिए ताकि ये अंग्रेजों की तरह अगले 50 साल तक राज कर सकें। और इनके समर्थक भी खुश हैं कि उन्हें 50 साल तक राज करने वाला नया अंग्रेज मिल गया है।

( ये लेख कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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