उत्तर प्रदेश में विकास दिखाने के लिए कोलकाता का फ्लाईओवर और अमेरिका की फैक्ट्री इम्पोर्ट करने के बाद हाल ही में भाजपा ने चीन से पूरा का पूरा एयरपोर्ट इम्पोर्ट कर लिया था।

अब भाजपा का एक नया पोस्टर वायरल हो रहा है जिसमें तमिल के प्रसिद्ध साहित्यकार और बुद्धिजीवी पेरुमल मुरुगन को झुग्गीवासी के रूप में दिखाया गया है।

दरअसल अगले साल दिल्ली में नगर निगम (MCD) का चुनाव होने वाला है। लम्बे समय से MCD की सत्ता पर काबिज भाजपा इस चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार शुरू कर चुकी है।

इसी चुनावी प्रचार का हिस्सा है भाजपा का ‘झुग्गी सम्मान यात्रा’ जिसके पोस्टर में पेरुमल मुरुगन को झुग्गीवासी के रूप में दिखाया गया है।

पोस्टर देखें –

यहां ये साफ कर देना उचित होगा कि झुग्गीवासी होना अपने आप में शर्म या शौर्य का विषय नहीं है। किसी के रहने के स्थान की वजह से उसे अपमानित नहीं किया जा सकता, या ‘छोटा’ नहीं समझा जा सकता।

हां, झुग्गीवासी होने में गरीब, लाचार और वंचित होना निहित है। यही वो बिन्दु है जिससे भाजपा का पूर्वाग्रह उजागर होता है। किसी के रंग और पहनावे के आधार पर उसकी आर्थिक स्थिति तय करने का पूर्वाग्रह इस पोस्टर में नज़र आ रहा है।

क्या भाजपा का ये पोस्टर उस पूर्वाग्रह से लबरेज नहीं है जिसके मुताबिक झुग्गीवासियों का रंग काला तय कर दिया गया है। और इसी पूर्वाग्रह के मुताबिक काला होना बदसूरत, कुरूप और भद्दा होना होता है।

क्या ये भाजपा के रंगभेदी मानसिकता का प्रमाण नहीं है? भाजपा नेता तरुण विजय को कौन भूल सकता है जिन्होंने दक्षिण भारत के लोगों पर नस्लीय टिप्पणी की थी।

ये मामला एक और वजह से आश्चर्यजनक है। जिस तमिल लेखक की तस्वीर का इस्तेमाल भाजपा ने अपने पोस्टर में किया है, वही तमिल लेखक कुछ साल पहले भाजपा-आरएसएस के आँखों का काँटा बने हुए थे। उस वक्त भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ता पेरुमल मुरुगन के उपन्यास ‘मादोरुबागान’ की प्रतियां जला रहे थे।

उनका आरोप था कि यह किताब ईश्वर विरोधी और अश्लील है। मामला कोर्ट तक गया। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब पेरुमाल मुरुगन ने अपने मरने की घोषणा कर दी। तब इस मामले को देश ही नहीं विदेशी मीडिया ने भी प्रमुखता से कवर किया था।

पेरुमल मुरुगन की इतनी प्रसिद्धी और चर्चा के बाद आखिर भाजपा से इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई ? जिस पेरुमल मुरुगन से भाजपा-आरएसएस ने लगभग आपसी रंजिश पाल ली थी उसे अचानक कैसे भूल गए ?

और ऐसा भी क्या भूले कि तस्वीर तक नहीं पहचान पाए ? ऐसे में क्या ये संभव नहीं है कि भाजपा ने मुरुगन की तस्वीर का इस्तेमाल जानबूझकर अपनी मानसिकता के अनुरूप उन्हें ‘नीचा’ दिखाने के लिए किया हो?

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