Shramik Trains
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कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच मोदी सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलवाईं। ये ट्रेनें मज़दूरों को राहत देने के लिए चलवाई गई थीं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बदइंतजामी की वजह से ये ट्रेनें मज़दूरों को राहत देने के बजाए उनके लिए कब्रगाह साबित होती नज़र आईं।

ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के झांसी से सामने आया है। जहां ट्रेन के टॉयलेट में एक 38 वर्षीय प्रवासी मजदूर का शव पड़ा मिला। मृतक की पहचान बस्ती निवासी मोहन लाल शर्मा के रूप में हुई है।

बताया जा रहा है कि 23 मई को शर्मा झांसी से श्रमिक स्पेशल ट्रेन में बस्ती गया था। ये ट्रेन 27 मई को आधी रात वापस लौटी। ट्रेन जब वापस यॉर्ड में गई, तो पता चला कि ट्रेन की टॉयलेट में एक श्रमिक का शव पड़ा हुआ है।

मोहन 23 मई को ही मुंबई से झांसी पहुंचे थे। वो मुंबई ने दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण अन्य मजदूरों की तरह उनके पास भी कोई काम नहीं बचा था। जिसके चलते वो घर वापस जाना चाहते थे। वो जैसे-तैसे मुंबई से झांसी पहुंचने में तो कामयाब रहे, लेकिन अपने घर बस्ती पहुंचना उन्हें नसीब नहीं हुआ। जब उन्हें झांसी से बस्ती की ट्रेन में बिठाया गया तो उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

पुलिस के मुतबिक़, उनके शव का पोस्टमार्टम किया जा रहा है और कोरोना वायरस टेस्ट के नतीजे आने के बाद ही शव को परिजनों को सौंपा जाएगा। मोहन के रिश्तेदार कन्हैया लाल शर्मा ने बताया कि झांसी पुलिस ने ग्राम प्रधान को फोन कर इस बात की सूचना दी।

कन्हैया ने बताया कि मोहन अपने साथ 28 हज़ार रुपये, एक साबुन की टिकिया और कुछ किताबें लेकर चल रहे थे। वह घर वापस आना चाहते थे क्योंकि वहां (मुंबई) में कोई काम नहीं था।उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें झांसी आकर शव ले जाने को कहा है।

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