मई 2018 में कोबरा पोस्ट ने ‘ऑपरेशन 136’ के नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। इस स्टिंग ऑपरेशन को दो भागों में रिलीज किया गया था, पार्ट-1 और पार्ट-2

‘ऑपरेशन 136’ से दर्जनों मीडिया संस्थानों का ‘भगवा’ चेहरा सामने आया। कोबरा पोस्ट की इस स्टिंग से पता चला कि कैसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया पैसा लेकर हिंदुत्व और बीजेपी का प्रचार करने को तत्पर है।

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ये जानते हुए कि ऐसी खबरों से सांप्रदायिक तनाव हो सकता है। विपक्षी पार्टियों के खिलाफ और बीजेपी के अनुकूल चुनावी माहौल बन सकता है।

अभी देश के पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम) में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। और मीडिया का रवैया बिल्कुल वैसा ही है जैसा कोबरा पोस्ट की स्टिंग में पाया गया था।

एबीपी न्यूज ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 12 नवंबर से एक शो शुरु किया है। नाम है – ‘तीर्थ यात्रा’

अब इस शो और इसे प्रस्तुत करने के तरीके की समीक्षा की जाए, उससे पहले ‘ऑपरेशन 136’ के कुछ जरूरी बिंदुओं को याद कर लिया जाना चाहिए।

कोबरा पोस्ट के पत्रकार पुष्प शर्मा ने ‘ऑपरेशन 136’ किया था। पुष्प शर्मा श्री मद भागवत गीता प्रचार समिति उज्जैन के प्रचारक बनकर अपना प्रस्ताव मीडिया घरानों के मालिकों और वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष रखते थे। पुष्प शर्मा के प्रस्ताव कुछ इस प्रकार होते थे-

1 – शुरूआती दौर में पहले तीन महीने हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार ताकि धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से एक अनुकूल माहौल तैयार हो सके।

2 – इसके बाद विनय कटियार, उमा भारती और मोहन भागवत जैसे हिंदुत्व कट्टरपंथियों के भाषणों को बढ़ावा देने के साथ अभियान को सांप्रदायिक लाइनों पर मतदाताओं को संगठित करने के लिए तैयार किया जाएगा।

3 – जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे तो ये अभियान राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ उग्र हो जाएगा। विरोधी नेताओं के लिए पप्पू, बुआ और बबुआ जैसे उपनामों का इस्तेमाल कर जनता के सामने इनकी छवि खराब की जाएगी।

4 – उन्हें इस अभियान को अपने प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, रेडियो और डिजिटल जैसे- न्यूज़ पार्टल, वेबसाइट और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और ट्वीटर जैसे सभी प्लेटफॉर्म पर चलाना होगा।

ज्यादातर मीडिया घराने पुष्प शर्मा की बात मान लेते थे। और इस बात मान लेने वालों की सूची में एबीपी न्यूज का नाम भी शामिल है।

अब बात एबीपी न्यूज के शो ‘तीर्थ यात्रा’ की…

एबीपी के इस शो को पत्रकार विजय विद्रोही कर रहे हैं। शो में गजब का Symbolism है। नाम से लेकर तस्वीरों तक में कूट कूट कर प्रतीकवाद भरा हुआ है।

सवाल उठता है कि जब कवरेज चुनाव की हो रही है तो शो का नाम ‘तीर्थ यात्रा’ क्यों रखा गया है? क्या ये अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव को धार्मिक रंग देने की कोशिश नहीं है?

शो का जो पोस्टर है वो भगवा झंडा से बना हुआ है। इस भगवा मध्य प्रदेश लिखा हुआ है, मानो मध्य प्रदेश में लोकतंत्र भगवातंत्र हो। शो शुरू होते ही जो धून बज रही है वो किसी धार्मिक गाने का धून लगता है। इतना ही नहीं बकायदा भजन भी बज रहा होता है।

विजुअल के नाम पर पत्रकार मंदिर मंदिर घूमते नजर आते हैं, पंडा कर्मकांड करते नजर आता है, मंदिर पर लहरा रहा भगवा पताका नजर आता है, भगवान की मूर्ति नजर आती है, पूजा करते लोग नजर आते हैं।

टिकर में चलाया जा रहा है कि ‘भगवान शिव के 12 ज्योतिलिंगों में से एक है उज्जैन का ये महाकाल मंदिर’ ‘महाकलेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है’ ‘हर रोज महाकाल मंदिर में भस्म आरती के बाद शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है’ मतलब टिकर देखकर इंसान कंफ्यूज हो जाए कि एबीपी न्यूज देख रहा है या आस्था चैनल

   

शो का वॉयस ओवर और उसके साथ का बैकग्राउंड म्यूजिक सुनकर सतसंग वाला फील आने लगता है। चैनल खुद बता रहा है कि ‘तीर्थ यात्रा’ का मकसद मध्य प्रदेश की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाली जगहों पर जाकर लोगों से बात करना है। ये बात समझ से बाहर है कि चुनावी कवरेज के लिए जगहों का चुनाव धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर क्यों किया जा रहा है?

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चुनावी कवरेज के लिए भजन सुनाने की क्या जरूरत है? पूजा, कर्मकांड दिखाने की क्या जरूरत है? ज्योतिलिंगों और महाकलेश्वर की माइथोलॉजी पढ़ाने की क्या जरूरत है?

एबीपी का कहना है कि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए कोई भी नेता महाकलेश्व का आशीर्वाद लिए बिना आगे नहीं बढ़ता है। अब अगर यही बात है तो एबीपी सीधे महाकलेश्वर का ही इंटरव्यू कर लेता और पूछा लेता की इस बार वो किसे जीता रहे हैं? इससे चुनाव का खर्चा, नेताओं की मेहनत, मतदाताओं का वोट सब कुछ बच जाता।

एबीपी को लोकतंत्रिक चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं से ज्यादा महाकलेश्व पर भरोसा है। वैसे ये भूलना नहीं चाहिए की एबीपी एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश का मीडिया है। और जहां तक सभी नेताओं के महाकलेश्वर जाने की बात है तो मायावती की बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश के सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और वो कभी भी महाकलेश्व नहीं गईं।

मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बाद बीएसपी के पास ही सबसे बड़ा जनाधार है। हां, नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी जैसे नेता जरूर महाकलेश्वर का चक्कर काटते नजर आ चुके। क्योंकि उन्हें हिंदुत्व की राजनीति करनी है, उन्हें धर्म की राजनीति करनी है जो देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक रही है।

खैर, कहने का मतलब ये है कि एबीपी का महाकलेश्व मंदिर में चुनावी कवरेज करना सीधे सीधे धर्म की राजनीति करने वाली पार्टी को फायदे पहुंचाने की एक घटिया कोशिश है। इस कोशिश से सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करने वाली कांग्रेस को फायदे मिले, इसकी गुंजाईश कम है। लेकिन ये ‘तीर्थ यात्रा’ बीजेपी के लिए टेलीविजन चुनाव प्रचार से कम नहीं है।

पत्रकार विजय विद्रोही अपने शो में जिस पहले शख्स का इंटरव्यू करते हैं वो है एक पुजारी। एबीपी के मुताबिक ये कोई ऐसा वैसा पुजारी नहीं है, ये वो पुजारी है जिसने अमीत शाह और राहुल गांधी दोनों को महाकलेश्व के दर्शन करवाए थे।

पत्रकार विजय विद्रोही चुनावी कवरेज कर रहे हैं लेकिन उन्होंने पुजारी से जो सवाल पूछा वो सुनकर कान से खून आ जाए। उन्होंने पूछा- इस बार महाकलेश्वर का आशीर्वाद किसके साथ है?

इस सवाल का चुनाव से, जनता के मूड से, मध्य प्रदेश के विकास से, शिवराज के वादे और विपक्ष के रूप में राहुल गांधी के आरोप से क्या लेना देना है? खैर, इस सवाल के जवाब में पंडित ने तो पहले खूब फर्जी कर्मकांड बतलाया फिर सबकुछ महाकलेश्व के आशीर्वाद के हवाले कर दिया।

अब फिर वही बात है जब महाकलेश्वर को ही सब कुछ करना है तो इस पंडित के इंटरव्यू की क्या जरूरत थी? इस बिना मतलब के सवाल जवाब के बाद एबीपी के अंदर का मध्यप्रदेश टूरीजम जाग जाता है और वो मंदिर के बाहर बिकने वाले फूल, माला, प्रसाद, दिया, तेल आदि की जानकारी देने लगता है।

फिर पत्रकार विजय विद्रोही मंदिर के बाहर सामान बेच रहे दुकानदारों से बातचीत करते हैं। फिर दर्शन के लिए आए लोगों से बातचीत करते हैं। ज्यादातर बीजेपी को वोट देने की बात कहते हैं। विजय विद्रोही के सवाल सुनकर संविधान की प्रस्तावना पर तरस आने लगता है। विजय पूछते हैं कि मोदी बड़े शिवभक्त हैं राहुल गांधी? ये सवाल काफी हैं एबीपी और विजय विद्रोही की पत्रकारिता को समझने के लिए।

बड़े शिवभक्त होने या न होने से चुनावी राजनीति का क्या लेना देना है ?

आखिर ये मीडिया धर्म को राजनीति से जोड़ने में दिन रात क्यों लगा हुआ है ?

क्या कोबरापोस्ट द्वारा किए गए स्टिंग से निकली बातों को ये सच साबित कर रहे हैं ?

चुनावी कवरेज को तीर्थयात्रा बताने वाले लोग पत्रकार हैं या कारसेवक!

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