किसानों का हुजूम दिल्ली आया था। देशभर से आए 200 से ज्यादा किसान संगठनों ने एक साथ 29 और 30 नवंबर को आंदोलन किया। इस आंदोलन को छात्रों, पत्रकारों, मजदूरों, सामाजिक संगठनों का समर्थन मिला, जिसकी वजह से ये आंदोलन उम्मीद से ज्यादा बड़ा हो गया।

बाद में विपक्ष के नेतागण भी किसानों के समर्थन में एक मंच पर आए। जब देश के कोने कोने से आए किसान अपनी पीड़ा बता रहे थें, अपने-अपने क्षेत्र की समस्या बता रहे थे, तब भारत का गोदी मीडिया सत्ता की दलाली कर रहा था।

जब किसान नरेंद्र मोदी को उनका वादा याद दिला रहे थे, तब कुछ बेशर्म मेनस्ट्रीम मीडिया पाकिस्तान और हिंदू-मुस्लिम पर चर्चा कर रहे थें।

मंदिर-मस्जिद करने के लिए मीडिया ‘अयोध्या’ चली जाती है मगर दिल्ली में आए हजारों ‘किसानों’ को नहीं दिखाती है

आज-तक अपने सबसे भड़काऊ शो दंगल में ‘इमरान का आतंकिस्तान, फंस गया हिंदुस्तान’ पर चर्चा कर रहा था। न्यूज 18 भी अपने सबसे भड़काऊ शो आर/पार में इमरान पर ही चर्चा कर रहा था, मुद्दा था ‘इमरान की गुगली पर कौन ‘क्लीन बोल्ड’?’

क्यों हजारों किलोमीटर दूर से आए ये किसान गोदी मीडिया के लिए मुद्दा नहीं हैं? क्या किसान मोदी को आईना दिखा रहे हैं इसलिए मीडिया उनकी बात नहीं सुन रहा है?

वैसे किसान भी अब गोदी मीडिया की हरकत समझ चुके हैं। खुद किसानों का ये कहना है कि मीडिया बिका हुआ है। मीडिया को मोदी और उद्योगपतियों ने खरीद लिया है।

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इसलिए टीवी का मीडिया सिर्फ मोदी की बात करता है, मंदिर मस्जिद करता है, हिंदू-मुस्लिम करता है। किसानों की बात कभी नहीं करता है।

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