अपनी समस्याओं को लेकर देशभर के किसान गुरुवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए। हज़ारों की तादाद में जुटे इन किसानों ने रात इसी मैदान में बिताई और सुबह होते ही सरकार तक अपनी आवाज़ पहंचाने के लिए संसद की ओर कूच कर दिए।

दिल्ली की सड़कों पर इस वक्त किसानों का बड़ा हुजूम नज़र आ रहा है, लेकिन यह किसान न्यूज़ चैनलों से नदारद हैं। किसी भी बड़े न्यूज़ चैनल पर किसानों की यह रैली देखने को नहीं मिल रही, न ही मेनस्ट्रीम मीडिया का कोई बड़ा एंकर रैली को सीधे तौर पर कवर करता नज़र आ रहा है।

देश के कई राज्यों से जुटे यह किसान दिल्ली की सड़कों पर चीख़-चीख़ कर अपनी मांगों को पूरा किए जाने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उनकी यह गुहार न तो सरकार के कानों तक पहुंच रही है और न ही मेनस्ट्रीम मीडिया किसानों की आवाज़ को बुलंद करने में कोई दिलचस्पी दिखा रहा है।

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अब सवाल यह उठता है कि मीडिया किसानों के आंदोलन को इस तरह नज़रअंदाज़ क्यों कर रहा है। अयोध्या में VHP की रैली को दिनो-रात कवर करने वाले न्यूज़ चैनल किसानों के आंदोलन को क्यों जगह नहीं दे रहे।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हिंदुत्ववादी संगठनों के जमावड़े के मद्देनज़र कई दिनों तक अयोध्या से लाइव कवरेज करने वाले एंकर भी किसान मार्च पर ख़ामोश नज़र आ रहे हैं। किसान दिल्ली की सड़कों से यह मांग कर रहे हैं कि सरकार संसद में विशेष सत्र बुलाकर किसानों के कर्ज़ और उपज की लागत को लेकर प्राइवेट बिल पारित करवाए।

पिछले कुछ महीनों में यह तीसरी बार है जब देश के अन्नदाताओं को राजधानी में बैठे सत्ताधीशों को जगाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा है। हैरानी की बात तो यह है कि किसान लगातार अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों पर ज़रा भी गंभीरता नहीं दिखाई है।

शायद सरकार को किसानों का यह आंदोलन इसलिए भी परेशान नहीं करता क्योंकि इसकी आवाज़ मीडिया में सुनाई नहीं देती। मीडिया अयोध्या में इकट्ठा होने वाले हुड़दंगियों को तो जमकर दिखाता और सराहता है, लेकिन किसानों के मामले में चुप्पी साध लेता है।

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मेनस्ट्रीम मीडिया की किसान मार्च पर इस खामोशी को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं कि सरकार की तरह ही मीडिया का एजेंडा भी राम मंदिर है न कि किसान।

इसी मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा है- ‘अयोध्या में भीड़ के पहुँचने से पहले ही मीडिया पहुँच गया था लेकिन दिल्ली में अन्नदाताओं की रिकार्डतोड़ भीड़ आने के बाद भी मीडिया नहीं पहुँच रहा। कम से कम किसानों के साथ तो निष्पक्ष न्याय किजीए। मोदी जी के नोट खाकर नहीं बल्कि उन्हीं का पैदा किया हुआ अनाज खाकर सब ज़िंदा है’

 

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