विश्वसनीयता खोती हुई CBI और बीजेपी-जेडीयू की मिलीभगत को उजागर करते इस लेख को शिवानंद ने लिखा है.

रेलवे के मामले में लालू परिवार को फँसाने का प्रयास बहुत दिनों से हो रहा था. इस प्रयास में नीतीश और सुशील मोदी दोनों शामिल रहे हैं. राकेश अस्थाना इस कुत्सित प्रयास में इन लोगों का माध्यम था.

अभी कुछ दिन पहले 27 सितंबर 18 को इकौनौमीक टाईम्स में एक वेंकटेश शर्मा का लंबा इंटरभ्यू छपा था. वेंकटेश उर्फ़ डब्लू पिछले विधान परिषद के चुनाव में नीरज के विरूद्ध भाजपा के उम्मीदवार थे. वेंकटेश ललन सिंह के शिष्य हैं. ललन ने ही वेंकटेश को सुशील मोदी के जरिए परिषद के चुनाव मे भाजपा का टिकट दिलवाया था.

वेंकटेश ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के डाइरेक्टर वर्मा के विरूद्ध एक पीटीशन दाखिल किया था. आरोप था कि पटना में लालू यादव के यहाँ जो छापेमारी हुई थी उसको वर्मा ने घंटा भर के लिए विलंब करवा दिया था. इस बीच रेलवे घोटाले से संबंधित महत्वपूर्ण काग़ज़ात को हटाने का मौका लालू परिवार को मिल गया. वेंकटेश की माँग थी कि एक विशेष टीम गठित कर इस आरोप की जाँच कराई जाए.

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सुप्रीम कोर्ट ने इसको ख़ारिज कर दिया था. आश्चर्यजनक है कि इस मामले में वेंकटेश की ओर से सुप्रीम कोर्ट में नीतीश तथा ललन के अत्यंत नज़दीकी और बिहार सरकार के वकील गोपाल जी पैरवी कर रहे थे. वेंकटेश को सुप्रीम कोर्ट में पीटीशन दाखिल करने में राकेश अस्थाना ने भी मदद की थी.

मेरी जानकारी के मुताबिक़ चुनाव हारने के बाद वेंकटेश संभवत: वाराणसी में स्कूल चला रहे हैं. वहीं ललन ने उनसे सुप्रीम कोर्ट में पीटीशन दाखिल करने के विषय में पहली बातचीत फ़ोन पर की थी. जानकारी के मुताबिक़ ललन ने वेंकटेश पर दबाव बनाने के लिए नीतीश से भी बात करवाई. अगर ललन और वेंकटेश के मोबाइल का कॉल डीटेल्स निकाला जाए तो दोनो के बीच की घनिष्ठता ज़ाहिर हो जाएगी.

सीबीआई के डाइरेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफ़नामे में स्पष्ट कर दिया है कि किस प्रकार राकेश अस्थाना, सुशील मोदी और पीएमओ के पदाधिकारी ने मिलकर लालू परिवार को फँसाने का साजिश किया. ललन सिंह के शिष्य वेंकटेश द्वारा सुप्रीमकोर्ट में दाखिल पीटीशन इस साजिस को और पुष्ट करता है.

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हमारा मानना है कि सीबीआई के मुख्यालय में अस्थाना तथा उनके जैसे अन्य पदाधिकारी सृजन घोटाले के मामले में नीतीश कुमार और सुशील मोदी को बचाने के लिए जाँच के नाम पर लीपापोती कर रहे हैं. नीतीश कुमार के मुताबिक़ सरकार का चेक नहीं भंजने (बाउंस) के बाद सृजन घोटाले का मामला उजागर हुआ.

और जैसे उनके जानकारी में यह बात आई उन्होने बिहार सरकार के पदाधिकारियों की जाँच टीम गठित कर भागलपुर भेजा. बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया. इसलिए इस मामले में उनपर उँगली नहीं उठाई जा सकती है.

नीतीश सरासर झूठ बोल रहे हैं. इस घोटाले में वे शुरू से साझीदार रहे हैं.जहां तक घोटाले के सार्वजनिक होने का सवाल है वह तो कम से कम 2013 में ही हो गया था जब जयश्री ठाकुर, तत्कालीन अपर समाहर्ता भू-अधिग्रहण के भागलपुर आवास पर निगरानी विभाग के आर्थिक अपराध इकाई ने छापेमारी की थी.

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उक्त छापेमारी में जयश्री ठाकुर के घर से सात करोड़ से ज्यादा की रक़म का सृजन में जमा होने की रसीद मिली. सारे समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा था. बल्कि यह खबर भी छपी थी कि बगैर रिज़र्व बैंक के लाइसेंस के सृजन नाजायज़ बैंकिंग का काम कर रहा है. उक्त छापेमारी के अगले दिन भागलपुर के संजीत कुमार ने मुख्यमंत्री को इमेल के जरिए सुचित किया था कि सृजन में अवैध ढंग से बैंकिंग का काम कर रहा है.

इस प्रकरण में नीतीश कुमार के आपराधिक चुप्पी का नमूना तो यह है कि छापेमारी करने वाले निगरानी विभाग के मंत्री स्वंय नीतीश कुमार हैं. इसलिए सृजन का मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की जानकारी में कम से कम 2013 में ही आ गया था.

लेकिन इन दोनो में से किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की.सृजन द्वारा लूट उस समय तक जारी जब तक सरकार का चेक बाउंस नहीं हुआ. ये दोनो उस लूट में हिस्सेदार बने रहे. इसलिए सृजन मामले में आज न कल दोनों को जेल जाना ही है.

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