सच को स्वीकार कीजिए.

हमारी कोई साझा विरासत नहीं है. हम आपस में धर्म, जाति, भाषा, चमड़ी के रंग आदि के आधार पर एक दूसरे से लड़ने-भिड़ने और एक दूसरे से नफरत करने वाले लोग हैं जो इतिहास के संयोग से एक भौगोलिक इलाके के अंदर रह रहे हैं.

हजारों साल का हमारा जो इतिहास है, उसमें गर्व करने लायक साझा कुछ नहीं है.

इतिहास के किसी भी दौर में देश का ये नक्शा नहीं रहा. इतिहास में कभी ऐसा समय नहीं था जब कन्याकुमारी, मणिपुर, गुजरात और कश्मीर एक साथ किसी एक शासन के तले रहे.

भारत एक नया देश है. इसलिए संविधान निर्माताओं ने भारत को बनता हुआ राष्ट्र कहा है.

India is a Nation in the making….ये बाबा साहेब के शब्द हैं. वे कहते हैं कि एक दूसरे से जन्म के आधार पर नफरत करने वाले लोग एक राष्ट्र कैसे हो सकते हैं. सामाजिक और आर्थिक असमानता को वे राष्ट्रविरोधी करार देते हैं.

हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई भाई-भाई कभी नहीं थे. उन्हें भाई-भाई या बहन-बहन बनना है.

भारत में वसुधैव कुटुंबकम कभी नहीं था. ये फर्जी नारा है. सबको एक कुटुंब या परिवार बनना है.

साझी विरासत कभी नहीं थी. यहां तो बहुसंख्यक आबादी को इंसान ही नहीं माना गया. तीन चौथाई आबादी को पढ़ने का हक नहीं था. एक चौथाई आबादी के छू जाने से लोग नहाते थे.

काहे की साझी विरासत?

एक दलित और एक ब्राह्मण की कौन सी विरासत साझी है. दलित के पास इतिहास में गर्व करने लायक क्या है?

महिलाओं के पास इतिहास में गर्व करने लायक क्या है?

शूद्रों, किसान और कारीगर जातियों के पास गर्व करने लायक इतिहास के पन्ने कौन से हैं?

जो देशभक्त हैं, उन्हें भारत को एक राष्ट्र बनाने के प्रोजेक्ट में जुटना चाहिए.

भारत को एक महान राष्ट्र बनाने में जुटें.

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