CBI द्वारा बंगाल के शारदा चिटफंड घोटाला, उत्तर प्रदेश के खनन घोटाले और मूर्ति घोटाले में की जा रही जांच और छापामारियां प्रथम द्रष्टया गलत नहीं लगतीं। घोटाले ममता की सरकार में भी हुए हैं, अखिलेश की सरकार में भी और मायावती की सरकार में भी ।

इन सभी मामलों की जांच निष्कर्ष तक पहुंचनी ही चाहिए। सवाल इन सभी मामलों में छापामारियों की टाइमिंग को लेकर उठाये जा रहे हैं। ये सभी मामले CBI के पास एक अरसे से लंबित पड़े थे।

बंगाल के चिटफंड घोटाले में तो कई सांसदों की गिरफ्तारी के बावजूद पिछले छह सालों में वह एक भी चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी थी। अब आम चुनाव के सिर्फ कुछ महीनों पहले विपक्षी गठबंधन की आहट मिलते ही CBI की इतनी सक्रियता अकारण नहीं है।

अगर चिटफ़ंड घोटाले के मुख्य आरोपी ‘मुकुल राय’ BJP में ना गए होते, तो आज CBI उनके घर भी जाती : हार्दिक पटेल

यह दिखाता है कि देश की सबसे बड़ी अनुसंधान एजेंसी अब पूरी तरह सत्ताधारियों के कब्ज़े में है। अब उसे सताधारी दल के लोग बता रहे हैं कि किन मामलों के अनुसंधान में सुस्ती या तेजी बरतनी है. किन्हें आगे तक ले जाना है और किन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट लगा देनी है।

हाल के दिनों में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप, आंतरिक विवादों और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण CBI की विश्वसनीयता अपने निम्नतम स्तर पर है। अब शायद ही उससे कोई न्याय की उम्मीद करे।

अगर CBI के पास ‘कोलकाता पुलिस कमिश्नर’ के ख़िलाफ़ सबूत है तो वो आज ख़ाली हाथ SC क्यों चली गयी? : मानक

यह सच है कि कांग्रेसियों ने अपने लंबे कार्यकाल में CBI को तोता बनाया था। भाजपा सरकार ने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में उसे कुत्ता बना कर रख दिया है।

अगर देश के लिए बेहद जरुरी इस संस्था की विश्वसनीयता बहाल करने की दिशा में जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब देश के कोने-कोने से लोग CBI को खदेड़ना शुरू कर देंगे।

  • ध्रुव गुप्त

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here