केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश विदेश में मौजूद कालाधन की रिपोर्ट साझा करने से साफ़ इंकार कर दिया है। आरटीआई के तहत सरकार से कालाधन पर उन रिपोर्टों की जानकारी माँगी गई थी जो अलग-अलग जाँच एजेंसियों ने 2013-14 के दौरान सरकार को सौंपी थी।

वित्त मंत्रालय का कहना है कि, क्योंकि ये रिपोर्ट संसद की स्टैंडिंग कमेटी ऑफ़ फ़ाइनेंस के पास है इसलिए अगर ये आरटीआई के तहत साझा किया गया तो संसद की मर्यादा का उल्लंघन होगा।

जब नरेंद्र मोदी 2014 में चुनाव प्रचार किया करते थे तो अपनी हर रैली में कहते थे कि उनके पीएम बनने के 100 दिन के भीतर काला धन देश में आ जाएगा।

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ये दावा भी आम है कि उन्होंने कथित तौर पर काला धन लाकर हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपये पहुँचाने की बात कही थी। लेकिन अब काला धन तो छोड़िए सरकार उसकी रिपोर्ट देने को भी राज़ी नहीं है।

कांग्रेस ने कराई थी जाँच-

साल 2011 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने तीन एजेंसियों के साथ मिलकर काला धन पर जाँच कराई थी। तीनों ने साल 2013-14 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इन एजेंसियों में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक फ़ाईनेंस एंड पॉलिसी, नेशनल काउंसिल ऑफ़ एप्लाईड इकोनॉमिक रिसर्च, और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़ाईनेंशियल मैनेजमेंट।

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मोदी सरकार ने ये तो माना है कि, इन संस्थानों ने कालाधन पर रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन उसका कहना है कि, RTI के तहत जो जानकारी माँगी गई है वो आरटीआई के धारा 8 (1) (सी) के तहत नहीं आती है। इसलिए इसे साझा नहीं किया जा सकता है।

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