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Godi Media

पत्र​कारिता के नाम पर जो चैनल पर फेक न्यूज फैलाता हो, जनता को उसकी पूजा करनी चाहिए. फूलों का हार पहनाना चाहिए. उसे देखते ही उसके चरणों में लोट जाना चाहिए. ऐसा इसलिए करना चाहिए कयोंकि वह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति का छुट्टा सांड़ है. उसके लिए न कोई निगरानी तंत्र है, न ही उसकी कोई जवाबदेही है.

जामिया में जिस गोली कांड का फोटो, वीडियो सब मौजूद है, हजारों चश्मदीद हैं, उसके बारे में खबर चलाई गई कि प्रदर्शनकारी पिस्तौल इस्तेमाल कर रहे हैं.

जनता पर पुलिस गोली चलाए तो वे पुलिस के साथ हैं. जनता पर आतंकी गोली चलाए तो वे आतंकी के साथ हैं. जनता पर सरकार कहर ढाए तो वे सरकार के साथ हैं. ऐसा करने वाले महान पत्रकारों को तुरंत भारत रत्न दे ​देना चाहिए या फिर उन्हें राष्ट्रपिता घोषित कर देना चाहिए.

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फेक न्यूज फैला रहा महान चैनल और महान पत्रकार गोली कांड पर राहुल गांधी और केजरीवाल को जिम्मेदार बताकर जवाब मांग रहा है. वह सरकार से नहीं पूछ रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में ऐसा बार बार कैसे हो रहा है? इसका आयोजक कौन है?

गोली मारने का आह्वान किया बीजेपी सांसद ने, केंद्र में सरकार है बीजेपी की, गृहमंत्री है बीजेपी का. कानून व्यवस्था है बीजेपी के पास. धर्म के आधार पर नागरिकता देने का काला कानून लाई है बीजेपी. पत्रकार सवाल पूछ रहा है जनता से और विपक्ष से. ऐसे पत्रकार को लोकतंत्र का पितामह घोषित कर देना चाहिए.

अभी दो जने पत्रकार से जनता ने बात करने से इनकार किया और नारा लगाकर उन्हें लौटा दिया तो कहने लगे कि शाहीन बाग सीरिया हो गया है. ऐसे पत्रकार को खोजी पत्रकारिता का नोबेल दे देना चाहिए.

कुछ लोगों ने कहा कि पत्रकार पर हमला हो गया है. बहुत बुरी बात है. पत्रकारों के संगठन अपने पत्रकारों से यह कभी नहीं कहते कि जनता पर हमला मत करो. यह अपेक्षा खूबसूरत है कि जनता पत्रकार की पूजा करे. लेकिन इस अराजकता के सूत्रधार तो आप ही हैं.

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जिस हिंसक राजनीति का रथ हांका जा रहा है, उसके सारथी तो आप पत्रकार ही हैं. गोली मारो के आह्वान से लेकर महिलाओं के बिकाउ होने की खबर तो आपने ही प्रसारित की और किसी से कोई सवाल न पूछा. गोली मारने की बात कहने वाले को आपने अभयदान दिया है, उसने आपको अभयदान दिया है. मिल बांटकर खाने का यह खेल जनता नहीं समझ रही है?

​दिन भर हिंदू मुसलमान आप करते हैं. जवाबदेही कोई आपकी नहीं है. लोकतंत्र की छाती पर चढ़कर छुरा आप घोंप रहे हैं. जनता से उम्मीद करते हैं कि वह देवता हो जाए?

पत्रकारों की आजादी अभीष्ट है, लेकिन पत्रकार नेता के चरणचाटन की प्रक्रिया में जनता का दुश्मन हो जाए तो यह उसकी आजादी कैसे हुई? जो लोग पत्रकारों की पैराकारी कर रहे हैं उन्हें इस पर भी बात करनी चाहिए कि पत्रकारों की जवाबदेही कैसे तय होगी? फेक न्यूज फैलाकर? जनता पर हमला करके? जनता का दुश्मन बनके?

अगर लोकतंत्र जनता का है, अगर सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है तो पत्रकार इतना निरंकुश कैसे हुआ जा रहा है?

  • कृष्णकान्त

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