कृष्णकांत

मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे. उसी साल यानी 2004 में देश में सुनामी आई. इसमें काफी तबाही हुई थी. विदेशों से मदद के हाथ बढ़े तो मनमोहन सिंह ने कहा था, “हमें लगता है कि हम ख़ुद से ही हालात को संभाल लेंगे और लगेगा कि हमें मदद की ज़रूरत है तब मदद लेंगे.

मनमोहन की अगुआई वाली भारत सरकार ने 16 साल पहले फैसला लिया था कि संकट के समय विदेशी उपहार, दान और मदद नहीं ली जाएगी. हम अपनी समस्याओं से निपटने में सक्षम हैं. सरकार का कहना था कि भारत अब अपने दम पर अपनी लड़ाई लड़ सकता है, इसलिए किसी विदेशी मदद को नहीं स्वीकार किया जाएगा.

सिर्फ यही नहीं, भारत ने 1991 में उत्तरकाशी भूकंप, 1993 में लातूर भूकंप, 2001 में गुजरात भूकंप, 2000 में बंगाल चक्रवात और 2004 में बिहार बाढ़ के बाद भी किसी तरह की विदेशी मदद नहीं ली.

उत्तराखंड में 2013 में भीषण तबाही आई, 2005 में कश्मीर में भूकंप आया और 2014 में कश्मीर में बाढ़ आई तब भी भारत ने विदेशी मदद लेने से इनकार कर दिया था.

हाल में 2018 में केरल में जब बाढ़ आई तो और यूएई ने केरल को 700 करोड़ रुपए की मदद की पेशकश की थी, पर मोदी सरकार ने ही लेने से इनकार कर दिया था.

लेकिन मोदी सरकार ने अपनी नाकामी को अपना वैश्विक डंका बताते हुए 16 साल पुरानी ये परंपरा तोड़ दी और आज वे कांगो, रवांडा और सूडान जैसे देशों के सामने कटोरा लेकर खड़े हैं. हालत ये है कि मोदी सरकार उस चीन से भी मदद लेने को तैयार है जिसने कुछ दिन पहले ही हमारे 20 सैनिकों को मार दिया था.

कुछ दिन पहले तक आत्मनिर्भरता का ज्ञान बांट रही सरकार इसके बचाव में कह रही है कि ‘पूरी दुनिया एक दूसरे पर निर्भर है’.

भारत जैसे बड़े देश में 10000 हजार इंजेक्शन की क्या बिसात है? लेकिन छोटी छोटी संख्या में ऐसी मदद आ रही है और बेशर्म सरकार इसपर भी गर्वीली हुई जा रही है.

अगर ये संकट भारत की क्षमता के बाहर होता तो मदद लेना अच्छा था. लेकिन पहले आप खुद से तो कुछ करते. लोग मर रहे थे और दो मई तक पूरी केंद्र सरकार चुनाव में व्यस्त थी.

दो मई के बाद केंद्र सरकार बंगाल में विधायकों और हारे हुए प्रत्याशियों तक को सरकारी सुरक्षा देने में व्यस्त है.

वैक्सीन खरीदने का पैसा नहीं है, लोगों की जान बचाने के लिए पैसा नहीं है, लेकिन अपने लिए हवा महल बनवाने और बंगाल के दर्जनों भाजपाइयों को सुरक्षा देने के लिए बहुत पैसा है. उड़ाने के लिए पूरा सरकारी खजाना है, लेकिन देशवासियों की जान बचाने के लिए भिक्षाटन करेंगे.

कोई इनसे पूछे कि एक साल में कोरोना से निपटने की क्या तैयारी की गई? अपने सत्तालोभ पर अमल करने के अलावा इस सरकार ने क्या किया?

आपके अस्पताल में ऑक्सीजन, दवाइयां और वेंटिलेटर लगवाने रवांडा की सरकार तो आएगी नहीं. कोरोना फंड के नाम पर वसूली भी आपने ही की थी और उस पैसे की बंदरबांट भी आपने की. लेकिन अस्पतालों में ऐसे वेंटिलेटर भेजे जो लोगों की जान ले रहे हैं.

इस सरकार ने पूरी दुनिया में भारत को बदनाम किया है और ऐसी छवि पेश की है कि जैसे भारत कोई दीनहीन देश हो. पिछले 20 सालों में भारत ने तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में जो रुतबा हासिल किया था, डंकापति ने उसे डुबा दिया है.

(यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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