कृष्णकांत

पूरे देश के लोग ऑक्सीजन के बगैर तड़प-तड़प कर मर रहे हैं और प्रधानमंत्री अपने सपनों का हवा महल बनवा रहे हैं. अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचने की समय सीमा तय नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री का नया आवास बनकर तैयार होने की समयसीमा तय हो चुकी है.

जब तमाम लोग पैदल चल कर मर गए थे तब प्रधानमंत्री ने अपने लिए 8500 करोड़ का विमान खरीदा था, जिसकी प्रति घंटा उड़ान का खर्च करीब 1 करोड़ 30 लाख रुपये आता है.

अब जब एक महीने ने देश का दम घुट रहा है, तब दिल्ली में नया प्रधानमंत्री आवास बनवाया जा रहा है. इस परियोजना का नाम है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट. अलग-अलग खबरें इस प्रोजेक्ट का खर्च अलग-अलग बताती हैं. किसी खबर में कहा जाता है कि इसकी कीमत 12 हजार करोड़ रुपये है, किसी में कहा जाता है इसकी कीमत 20 हजार करोड़ रुपये है.

आज बताया गया है कि नया प्रधानमंत्री आवास जो इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है, दिसंबर 2022 तक बनकर तैयार हो जाएगा. नया उपराष्ट्रपति आवास भी मई 2022 तक तैयार हो जाएगा. राजधानी दिल्ली में लॉकडाउन है. जन जीवन ठप है. लेकिन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण के ‘जरूरी सेवाओं’ में शामिल किया गया है. मगर ये नहीं बताया गया है कि लाशों के ढेर पर बनने वाला ये महल न बनता तो किसकी जान चली जाती!

अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचाने के बारे में क्या फैसला हुआ है, देश को नहीं मालूम है. एक महीने से लोग ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर और दवा के बिना जान गवां रहे हैं. हर दिन चार हजार लोग मारे जा रहे हैं. देश की जनता को वैक्सीन लगवाने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है. हवा महल बनवाने के लिए पैसा है.

जो भारत अपने गरीबी के दिनों में भी अपने नागरिकों का फ्री में टीकाकरण करता आया है, उसी भारत में अब टीकाकरण के लिए पैसे वसूले जाएंगे. कम से कम एक तिहाई गरीब आबादी का टीकाकरण कैसे होगा, ये सोचने वाला कोई नहीं है. न उस पर कोई बहस है.

देशवासियों से कहा गया है कि प्रधानमंत्री बहुत मजबूत हैं, घी खाते हैं, मशरूम खाते हैं, 18 घंटे सोते हैं, 10 लाख का सूट पहनते हैं, इसलिए उनसे प्रश्न करना ‘देशद्रोह’ है.

अब ये सवाल कौन पूछे कि जनता की जान बचाना जरूरी है या लाशों के ढेर पर हवा महल बनवाना जरूरी है? हमारा लोकतंत्र रोज क्रूरता के नए कीर्तिमान लिखता है. हमारी सरकार हर दिन बर्बरता का नया अध्याय लिखती है. जनता के पैसे से ही जनता की जान बचाने में मुस्तैदी नहीं है, हवा महल बनवाने में मुस्तैदी है.

इत्तेफाक से सेंट्रल विस्ट्रा प्रोजेक्ट के मॉडल का जो आकार है, वह भी कुछ-कुछ ताबूत के आकार का है. जिस समय भारत पर 50 साल का ऐतिहासिक आर्थिक संकट है, जिस समय महामारी से रोज चार हजार लोग मर रहे हैं, जिस समय लोग ऑक्सीजन जैसी मामूली चीज के अभाव में तड़पकर मर रहे हैं, उस समय सरकार की प्राथमिकता प्रधानमंत्री के लिए नया आवास बनवाना है.

यह कोई प्रोजेक्ट ​नहीं है. यह पूरी भारत की जनता पर किया जा रहा एक क्रूरतम अपराध है. यह एक ‘तानाशाह’ की सनक का नतीजा है जो करोड़ों लोगों की जान बचाने की जगह इतिहास में अपना नाम दर्ज कराना चाहता है. भारत की जनता ने ऐसे दुर्दिन कभी नहीं देखे थे.

 

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