एक हैं अन्ना हजारे. उन्होंने यूपीए के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया था. उस वक्त कई लोग उनको गांधी ही मान बैठे थे. आज उनकी हालत ये है कि किसान आंदोलन को लेकर कई बार धमकी दे चुके हैं.

कह रहे हैं कि किसानों की मांग नहीं मानी गई तो हम भी आंदोलन करेंगे लेकिन उनकी बात का कोई लोड नहीं ले रहा.

मसला ये है कि धोती-बनियान पहन लेने से कोई गांधी नहीं हो जाता. मुंह में जबान रखनी पड़ती है. गलत को गलत कहना होता है.

क्या गांधी जी के जीवन में कभी ऐसा हुआ कि वे अन्याय के खिलाफ सालों या महीनों चुप बैठे रहे हों?

सरकार बदलने में अन्ना के आंदोलन का बड़ा रोल था. लेकिन सरकार बदलने के बाद वे कान में तेल डालकर बैठ गए.

जनता को साफ समझ में आ गया कि वे अन्याय के खिलाफ नहीं थे. वे नये अन्याय के संस्थापक बनकर आए थे. वे आंदोलनकारी की शक्ल में भाड़े के सियासी शूटर थे.

अन्ना हजारे जैसे तमाम लोग आते जाते रहते हैं और लेनिन गांधी सदियों में एक बार आते हैं. गांधी किसी फाउंडेशन या किसी सांप्रदायिक संघ की कठपुतली नहीं होते.

उनका जमीर जमाने के लिए जिंदा रहता है और इसीलिए गांधी जैसे महापुरुष अमर हो जाते हैं.

इसीलिए पिछली कई सदियों में गांधी सिर्फ एक ही हुआ.

( यह लेख पत्रकार कृष्णकांत की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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