हमारा मीडिया दिनो-दिन बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। 6 साल से एनडीए की सरकार है लेकिन मीडिया बेचारा हर बात के लिए कांग्रेस से सवाल पूछता है। वह सरकार से नहीं, विपक्ष से सवाल पूछता है।
जिस गति से अर्थव्यवस्था नीचे आ रही है, हाल फिलहाल में उसके उबरने के आसार नहीं दिखते। उससे भी दिलचस्प तो यह है कि अगर विकास दर शून्य पर आ जाए तो मीडिया हेडिंग लगाएगा- “बुरे फंसे राहुल गांधी, भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर शून्य पहुंची”। ये मैं कोई कल्पना नहीं है। विपक्ष जो भी सवाल उठाता है, मीडिया इसी तरह छापता है।
दो बैंक डूब चुके हैं। तीसरा डूबने की बस घोषणा बाकी है। विकास दर 4 फीसदी पहले ही आ गई थी। करेले पर नीम ये कोरोना और आ गया है। पूरी दुनिया कह रही है कि वैश्विक मंदी से पहले ही भारत सरकार की ध्वंसकारी नीतियों ने अर्थव्यवस्था को रसातल पहुंचाने का जुगाड़ कर दिया था।
विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी तक का उदाहरण सामने है, डूबे बैंकों का उदाहरण सामने है, लेकिन मीडिया क्या मजाल की सरकार से सवाल पूछ ले!
ठीक है कि आप विपक्ष की बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते, मत बढ़ाइए, खुद से तो सवाल पूछिए। वह भी संभव नहीं है।
हालात ये हो गई है कि बैंकों की तरह मीडिया संस्थान भी बंद हो जाएं या बंद करवा दिए जाएं तो पत्रकार बेचारा कहेगा- ‘मोदी जी ने किया है तो ठीक ही किया होगा।’
जैसे देश बनाने में नेता, पार्टी, अधिकारी, नागरिक, मीडिया आदि सबका योगदान होता है, वैसे डुबा देना भी सबके योगदान से ही संभव है। डूबी हुई अर्थव्यवस्था और बैंकों की लूट का श्रेय मीडिया को भी मिलना चाहिए।
आम चूस कर खाते हैं, काट कर खाते हैं कि चिचोर कर चाटते हैं, जैसे सवालों के लिए 56 नहीं, 112 इंच का सीना चाहिए।
( ये लेख कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )