भोपाल के मोहन नामदेव गोलगप्पे का ठेला लगाते हैं. मंगलवार रात पत्नी क्षमा की मौत हो गई. उनके दो बेटे दोस्त आदिल की मदद से मां को घर लाए. आदिल ने मोहल्ले के लोगों को सूचना दी. बस्ती में 500 से अधिक हिंदू परिवार हैं. कोई नहीं आया. अंतिम संस्कार करने में कम से कम चार लोग चाहिए. बेटों के कुछ एक दोस्त आए लेकिन मुसलमानों को लगा कि यह ठीक नहीं है. मुसीबत में साथ देना चाहिए.
मुस्लिम समाज के लोग एकट्ठा हुए. सबने मिलकर इंतजाम किया, अर्थी सजाई और क्षमा के दोनों बेटों के साथ अर्थी को कंधा देकर ‘राम नाम सत्य है…’ के साथ शमशान ले गए और महिला का अंतिम संस्कार कराया.
सियासी नफरतों के दौर में इंसानी कहानियां मौजूद हैं. हिंदू आलू खोजने की जगह यह देखिए कि मुसीबत में धर्म काम नहीं आता. इंसान काम आता है.
सहारनपुर की मीना दादी बेसहारा थीं. पति की चार साल पहले मौत हो गई थी. खुद बीमार रहती थीं. उम्र 77 साल थी. लॉकडाउन के दौरान वे अकेले खाने के लिए, दवाई के लिए इधर उधर भटक रही थीं. पूर्व विधायक के कहने पर प्रशासन ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया था. अस्पताल में उनकी मौत हो गई. कंधा देने वाला उनका अपना कोई नहीं था. अस्पताल ने पुलिस को सूचित किया. तीन पुलिसकर्मी आए. कंधा देने के लिए तो चार लोग चाहिए. ऐसे में एक मुस्लिम युवक सामने आया. चारों ने मिलकर दादी का अंतिम संस्कार किया.
इसी लॉकडाउन के दौरान बुलंदशहर, इंदौर, जयपुर, मुंबई, कोलकाता में ऐसी कहानियां सामने आई हैं जहां मुसलमानों ने हिंदुओं को कंधा दिया है. मुसलमानों से सब्जी न खरीदने का अभियान चलाने वाले, मुसलमानों से नफरत करने का अभियान चलाने वाले आपके अंत समय का कंधा आपसे छीन लेना चाहते हैं. उनके जाल में मत फंसिए.
किसी समाज का कोई अपराधी है तो उसे सजा दीजिए, पूरे समाज को अपराधी मत कहिए. महात्मा गांधी ने कहा था, पापी से नहीं, पाप से घृणा करो. अपराधी से नहीं, अपराध से घृणा करो. अपराध करने वाले को बुरा कहो. एक अपराधी का अपराध सारे समाज का प्रमाण पत्र नहीं है. मनुष्य बनो.
(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)