modi govt

असली संकट यह है कि जब हम कोरोना से उबरेंगे, तब तक करोड़ों लोग भयानक गरीबी और भुखमरी की चपेट में आ जाएंगे. सरकार को चाहिए कि कुछ दिन ट्विटर पर चुटकुले पोस्ट करने की जगह अपने विशेषज्ञों को सुने.

अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी और रघुराम राजन, भारत के इन तीन बड़े अर्थशास्त्रियों ने एक लेख लिखकर सरकार को कुछ सलाह दी है. इनमें से दो नोबल विजेता हैं, एक पूर्व आरबीआई गवर्नर हैं. ये तीनों ही दुनिया के श्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में गिने जाते हैं.

इन तीनों अर्थशास्त्रियों का मानना है कि लॉकडाउन के चलते भारतीय अर्थव्यस्था को भारी नुकसान हुआ है ऐसे में आमदनी और नौकरियों पर संकट गहरा गया है. इसमें सबसे बड़ी चिंता यह है कि भारी संख्या में लोग भयानक गरीबी और भुखमरी का शिकार हो जाएंगे.

इसके लिए उन्होंने सरकार को कुछ सलाह दी है:

दिहाड़ी मजदूरों और लोगों के सामने खाने का संकट है. जिस तरह लॉकडाउन तोड़ने के मामले सामने आए हैं ऐसे में मज़दूरों की बुनियादी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर जल्द से जल्द कोई कदम उठाना चाहिए. डिलीवरी सिस्टम में बदलाव किया जाना चाहिए.

भारत में अनाज के स्टॉक भरे पड़े हैं. भारत के पास 7 करोड़ टन का स्टॉक है. बफ़र स्टॉक की तुलना में ये तीन गुना है, ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इन स्टॉक का इस्तेमाल ग़रीबों तक जल्द से जल्द पहुंचाने की योजना बनाए.

सरकार ने ग़रीबों को अगले 3 महीने तक 5 किलो अनाज देने का फैसला किया है. यह सराहनीय कदम है लेकिन इसे 6 माह किया जाना चाहिए.

अर्थव्यस्था को भारी नुकसान से बचाने के लिए सरकार को वहां पैसे लगाने चाहिए जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. हालांकि, ऐसे में समय में उन लोगों की मदद में कटौती बिल्कुल नहीं की जानी चाहिए, जिन्हें मदद की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.

सरकार को ग़रीबों की मदद के लिए अनाज और कैश वितरण के लिए जनधन खाते और फिर राशन कार्ड के आगे सोचना होगा. अभी भी बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनका राशन कार्ड और जनधन खाता नहीं है, उन्हें सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.

स्कूल बंद हैं, बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल रहा है. सरकार को बच्चों का मील उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए. प्रवासी मजदूरों के लिए पब्लिक कैंटीन की व्यवस्था होनी चाहिए और इसके लिए सरकार को एनजीओ की मदद लेनी चाहिए.

सरकार को ने लॉकडाउन का ख़तरा भांपते हुए किसानों के अनाज ख़रीदने को ज़रूरी कदम उठा रही है, लेकिन नेशनल इमरजेंसी के इस दौर में पुराने स्टॉक को निकालना भी बेहद ज़रूरी काम है.

सरकार को उन ग़रीबों तक कैश पहुंचाने की तुरंत व्यवस्था करनी चाहिए जहां लॉकडाउन खुलने के बाद भी दिक़्क़त बनी रहेगी. अभी सरकार जितना रुपए दे रही है, एक परिवार के लिए काफी नहीं है. किसानों की तरह ही मज़दूरों को भी कैश का लाभ मिलना चाहिए.

रवि की फसल तैयार है. सरकार को ख़रीदारी के बारे में फ़ैसला लेना होगा. किसानों को अगली फ़सल के लिए पैसे और खाद की ज़रूरत होगी. सरकार को किसानों की दिक़्क़तों के बारे में भी सोचना होगा. जिन किसानों ने लोन लिए हैं, वे लोन कैसे चुकाएंगे इसके बारे में भी योजना बनाए जाने की ज़रूरत है.

केंद्र से राज्यों को दिया जाने वाल फंड समय पर दिया जाना चाहिए. फंड मिलने के साथ ही राज्यों को भी अपने स्तर पर प्लान तैयार कर ग़रीबों की मदद करनी चाहिए. कुछ उद्योगों को वापस उठने में सरकार की ज़रूरत होगी ऐसे में सरकार को ऐसे उद्योगों पर ध्यान देना होगा.

इसी से मिलती जुलती कई बातें कल राहुल गांधी ने भी कही थीं. ये तीनों अर्थशास्त्री भारत को आर्थिक तौर पर इस संकट से उबारने में काफी मदद कर सकते हैं, अगर उनकी सुनी जाए तो, लेकिन मुसीबत यह है कि भारत सरकार आजकल नोबल विजेताओं की नहीं, आईटी सेल के लफंगों की सलाह से चलती है. श्रेष्ठ लोगों की हमें कोई जरूरत नहीं है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here