ये बात सच है कि जब वक़ीलों के भेस में कुछ गुंडों ने कोर्ट परिसर में मेरे ऊपर और मीडिया वालों पर जानलेवा हमला किया था, तब ज़्यादातर पुलिसवाले तमाशा देख रहे थे, लेकिन उस दिन अपनी जान पर खेलकर मुझे बचाया भी कुछ पुलिस वालों ने ही था।

हर पेशे में कुछ लोग ग़लत होते हैं, लेकिन उनकी ग़लतियों के आधार पर पूरे के पूरे पेशे को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। यह बात ठीक है कि भड़काऊ मीडिया और राजनीतिक लाभ के लिए कुछ वकीलों ने मेरे ऊपर हमला किया लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि सारे के सारे वक़ील अपराधी हैं।

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दिल्ली में पुलिसवालों और वक़ीलों के बीच जो हो रहा है उससे ये बात एक बार फिर साबित होती है कि क़ानून और व्यवस्था का दुरुस्त होना सबकी ज़रूरत है वरना नम्बर किसी का भी आ सकता है और भीड़ तैयार करने वाली राजनीति के हत्थे जान किसी की भी जा सकती है।

इस पूरे मामले में होना यह चाहिए था कि जिसने भी क़ानून तोड़ा हो चाहे पुलिस हो या वक़ील उन पर तुरंत कार्रवाई की जाती, लेकिन दुखद है कि हमारे देश की राजनीति क़ानून को अपना काम निष्पक्ष तरीक़े से करने नहीं देती है।राजनीतिक गुणा भाग के चलते ही इस पूरे मामले पर न तो क़ानून मंत्री का और न ही गृहमंत्री का कोई बयान आया है।

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जब मेरे ऊपर और कुछ मीडिया वालों के ऊपर कोर्ट परिसर में कुछ वकीलों ने हमला किया था तब हमला करने वाले वकीलों के सरदार और हमला होने देने वाले पुलिस के सरदार दोनों को सरकार ने ईनाम दिया था। इसलिए ही हम आज भी किसी पेशे के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि न्याय के पक्ष में खड़े हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि राजनीति हर पेशे के अपराधियों को अपने फ़ायदे के लिए संरक्षण देती है। इसलिए अपराध के ख़िलाफ़ बोलिए, किसी पेशे के ख़िलाफ़ नहीं।

( ये लेख कन्हैया कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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