नीतीश सरकार के पूर्व मंत्री और जद(यू) के वर्तमान विधायक मेवालाल चौधरी के मौत की दर्दनाक कहानी उनके सहायक की ज़ुबानी…

सरकार…त्राहिमाम! 1 दिन के सही, मंत्री रहे थे डॉ. मेवालाल चौधरी। JDU के विधायक भी थे। वह भी त्राहिमाम करते-करते चले गए। कोरोना से मौत का शोक मत जताइए, क्योंकि उन्हें बिहार के सिस्टम ने मारा है। यकीन न हो तो यह जुबानी पढ़िए, उस सहायक की- जो आपके MLA का साया बन साथ था।

निजी सहायक शुभम सिंह ने भास्कर से कहा- “वह तो पटना आना भी नहीं चाहते थे। समय पर रिपोर्ट नहीं मिली, इलाज नहीं दिखा तो आए। यहां अपनी सरकार का सिस्टम भी झेला, फिर प्राइवेट भी। सत्तारूढ़ दल के विधायक, पूर्व मंत्री…सारी पैरवी के बावजूद आज सुबह विदा हो गए।” पूरा वाकया शुभम की जुबानी, यहां पढ़िए…

जांच का सैंपल देकर इंतजार किया, मगर आना पड़ा पटना

डॉ. मेवालाल चौधरी की तबीयत खराब चल रही थी। उन्हें आशंका हुई तो 12 अप्रैल को RT-PCR जांच के लिए मुंगेर में सैंपल दिया। 13 अप्रैल को वह सैंपल पटना में रिसीव हुआ और 16 अप्रैल को शाम में PMCH ने उन्हें पॉजिटिव बताया।

इस बीच, 15 अप्रैल को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई और खांसी बहुत बढ़ गई तो उन्होंने रात में पटना निकलने की इच्छा जताई। साढ़े 8 बजे अपनी इंडिवर कार से पटना के लिए रवाना हुए। ड्राइवर, गार्ड और मैं साथ था। कार में एक ऑक्सीजन सिलेंडर भी रख लियाा। रास्ते में उन्हें खूब खांसी हुई। बताते रहे कि तबीयत ज्यादा बिगड़ रही है, लेकिन रास्ते भर अदरक चबाते हुए आए कि खांसी कम होगी। रात 12.30 बजे पटना पहुंचे, तब तक ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी।

किसी अस्पताल में जाने की बजाय वे 3 स्टैंड रोड स्थित आवास गए। वहां बोले कि सांस लेने में बहुत कठिनाई हो रही है। इसके बाद आवास पर ही उन्हें ऑक्सीजन लगाई गई। एक घंटे के बाद उन्होंने ऑक्सीजन हटाने को कहा।

सुबह IGIMS गए, मगर वहां से टालकर लौटा दिया गया

16 अप्रैल की सुबह 7:45 बजे IGIMS, बेली रोड गए। वहां रैपिड एंडिजन टेस्ट किया गया और उस रिपोर्ट में उन्हें कोरोना निगेटिव बताया गया। विधायक जी ने खुद कहा कि RT-PCR करा लें। यह जांच भी IGIMS में की गई, लेकिन कहा गया कि जांच की रिपोर्ट 2 दिन बाद आएगी। यह भी कहा गया कि रिपोर्ट आने के बाद भर्ती लिया जाएगा। पद, पहचान, पैरवी…किसी से जगह नहीं मिली।

थककर पारस पहुंचे, DM से पैरवी पर बेड मिला, ICU नहीं

विधायक जी का मन नहीं माना। उन्होंने कहा कि मुझे पारस हॉस्पिटल ले चलो। वहां चेस्ट का CT स्कैन कराओ, खांसी कम नहीं हो रही है। CT स्कैन कराकर उसकी रिपोर्ट पारस हॉस्पिटल में ही डॉ. कुमार अभिषेक से दिखाई गई। रिपोर्ट देखते ही उन्होंने ICU में भर्ती करने की सलाह दी, लेकिन ICU में जगह नहीं होने की वजह से इमरजेंसी में ही रखा गया। पटना DM के कहने पर बेड मिला, लेकिन 8-10 घंटे तक ICU का इंतजार ही करते रहे।

इस बीच ऑक्सीजन लगातार चलती रही। इससे उन्हें थोड़ी राहत मिली, लेकिन शाम होने पर कहने लगे कि सांस लेने में दिक्कत हो रही है। खांसी भी बढ़ने लगी। रात में 10-11 बजे के बीच उन्हें ICU में जगह मिल पाई, तब इलाज शुरू हुआ। 18 अप्रैल की रात पारस हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने कहा कि वे ठीक से ऑक्सीजन नहीं ले पा रहे हैं इसलिए वेंटिलेटर पर लाना होगा। डॉक्टरों ने बताया कि उनके लंग्स ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इसके लिए परमिशन वाले पेपर पर साइन किया। कोविड मरीज के साथ रहने की अनुमति नहीं थी, इसलिए देर रात मैं वापस आवास पर लौट आया। 19 अप्रैल को सुबह 4 बजे हॉस्पिटल ने कॉल कर बुलाया और मौत की सूचना दी।

कोरोना मरीजों के इलाज में कहां-कहां चूक हो रही है, जिसे सुधार कर मरीजों की जान बड़े स्तर पर बचाई जा सकती है। यह समझने के लिए इस केस की 4 गलतियां भी भास्कर ने उसी भुक्तभोगी से पूछीं-

1. पहली गलती कहां हुई?

RT-PCR टेस्ट के लिए सैंपल 12 अप्रैल को लिया गया और रिपोर्ट आई 16 अप्रैल को।

2. दूसरी गलती कहां हुई?

IGIMS में हुई रैपिड एंटीजन टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव आने के कारण धोखा हुआ।

3. तीसरी गलती क्या दिखी?

पटना आए तो IGIMS में भर्ती हो जाते तो दिक्कत नहीं होती। हालत देख भी लौटाया।

4. चौथी गलती कहां हुई?

पारस हॉस्पिटल में पैरवी पर इंट्री हुई, मगर ICU नहीं मिला। स्थिति संभल सकती थी। “सर बोल रहे थे कि इमरजेंसी में ऑक्सीजन लगाकर स्लाइन चढ़ाया गया, बस।”

(यह लेख जितेंद्र नारायण की फेसबुक वॉल से लिया गया है)

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