आजकल जेएनयू के छात्र छात्राओं को मुफ्तखोर और अय्याश बताते हुए इस देश का मीडिया जमकर दुष्प्रचार कर रहा है। उसके इस दुष्प्रचार को समर्थन मिल रहा है भाजपा के समर्थकों से। क्योंकि इस सत्ताधारी पार्टी के तमाम बड़े नेता जेएनयू के बारे में दुर्भावना रखते हैं।
आजाद माहौल में बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा पाने के लिए ये नेतागण अपने बच्चों को विदेश भेज देते हैं और लाखों रुपए खर्च करते हैं लेकिन जब उसी गुणवत्ता की शिक्षा को सस्ती बनाए रखने के लिए मांग जेएनयू के छात्र-छात्राएं करते हैं तो फिर उन्हें मुफ्त खोर और आजादी गैंग कहकर दुष्प्रचार किया जाता है।
सरकार के तानाशाही भरे फैसले का विरोध करने जब ये छात्र-छात्राएं सड़कों पर उतरते हैं तो उनपर लाठीचार्ज कर दिया जाता है। तमाम छात्राओं के साथ भी हिंसक बर्ताव किया जाता है। उन्हें सड़कों पर घसीटा जाता है। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया पर बीजेपी के तमाम नेताओं की आलोचना की जा रही है। मोदी सरकार में मंत्री रविशंकर प्रसाद का उदाहरण देते हुए फेसबुक पर अरविंद कुमार ने लिखा-
ग़रीबी-बेरोज़गारी से लड़ने के लिए बनी सरकार अपनी ही एक यूनिवर्सिटी से लड़ रही है, यही अच्छे दिन हैं
लेकिन क्या रवि शंकर प्रसाद को यह नहीं पता चला कि जहाँ उनकी प्यारी बिटिया पढ़ती है, वहाँ पुस्तकालय चौबीस घंटा खुला रहता है, छात्र दिन-रात कभी भी पूरे विश्वविद्यालय परिसर में कहीं भी आ जा सकते हैं, अपनी मन पसंद ड्रेस पहन सकते हैं, यहाँ तक कि लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के कमरे तक में आ जा सकते हैं।
हमारे नेता-अधिकारी अपने बच्चों के लिए यह सब सुविधा ख़रीद रहे हैं, और देश के अंदर विश्वविद्यालयों में इस बात का मौन समर्थन कर रहे हैं कि पुस्तकालय चौबीस घंटा नहीं खुला रहना चाहिए। याद करिए अभी पिछले साल BHU में लड़कियों पर लाठी चार्ज सिर्फ़ इस बात के लिए हुआ था कि वो माँग कर रही थी कि पुस्तकालय चबीस घंटा खुले और उनको उसमें पढ़ने का अधिकार मिले।
टैक्सपेयर्स के पैसे से करोड़ों की मूर्ति बना सकते हैं लेकिन ग़रीब के बच्चे को नहीं पढ़ा सकते, क्यों? : कन्हैया
रविशंकर प्रसाद इस पर कुछ नहीं बोले, हॉर्वर्ड से पढ़े जयंत सिन्हा भी कुछ नहीं बोले थे, अपनी बेटी को आक्सफ़ोर्ड से क़ानून की पढ़ाई करवाने वाली सुषमा स्वराज भी कुछ नहीं बोली थी।
इस बीच ख़बर है कि जेएनयू में जो पुस्तकालय चौबीस घंटा खुला रहता है, वह अब रात में 11.30 बंद होगा। छात्रों को हास्टल में ड्रेस पहन कर रहना होगा, वग़ैरह वग़ैरह। विश्वविद्यालय है, आर्मी की छावनी नहीं।
इसे मैंने Politics of Unfreedom कहा है।