सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश राहुल चतुर्वेदी को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है न्यायमूर्ति चतुर्वेदी वही है जिन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चिन्मयानंद को यूपी के शाहजहांपुर में एक लॉ कॉलेज की छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप में जमानत दी थी।
न्यायाधीश ने शिकायतकर्ता के आचरण को “हैरान करने वाला” बताया था और कहा था कि उसने “फिरौती के लिए आरोपी को ब्लैकमेल करने की कोशिश की।”
साफ है कि सत्ताधारी दल के लोगो की मदद करते जाओ और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते जाओ यही अब हमारी न्यायपालिका का चरित्र नजर आ रहा है।
कुछ महीने पहले इसी सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस विजया के. ताहिलरमानी का मेघालय हाईकोर्ट में तबादला करने की सिफारिश की थी। इसके विरोध में महिला जज तहिलरमानी ने इस्तीफा दे दिया
बंबई हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद पर काम करते हुये जस्टिस ताहिलरमानी ने मई, 2017 में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में सभी 11 व्यक्तियों की दोषसिद्धि और उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा था. जाहिर है ये फैसला सत्ताधारी दल को बिल्कुल पसंद नही आया था इसलिए उनको मेघालय कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
कुछ ऐसा ही किस्सा बॉम्बे हाइकोर्ट में कार्यरत न्यायाधीश जस्टिस अकील अब्दुलहमीद कुरैशी का है जिन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नति करने की कॉलेजियम की सिफारिश को केंद्र सरकार रोक कर बैठ गयी लेकिन कोलेजियम ने इसके लिए कोई नही आवाज उठाई।
जस्टिस कुरैशी वही जज है जिन्होंने 2010 में वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में दो दिनों की पुलिस हिरासत में भेजा था।
कोलेजियम में शामिल जब ऐसे जज पूछते हैं कि ‘क्या देश में कोई कानून बचा है?’ तो बॉय गॉड बड़ा बुरा फील होता है।
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गिरीश मालवीय